________________ सारी बातों के साथ एक बात और जोड़ दें कर्मशास्त्र की। आवेगों के कारण बहुत सारी बातें होती हैं। इसके साथ एक बात पहले जोड़ दें और एक बात पीछे जोड़ दें। पहले यह जोड़ें कि भय परिस्थिति से उत्पन्न नहीं है, परिस्थिति से उद्भूत है। उत्पन्न होना अलग बात है और उद्भूत होना अलग बात है। परिस्थिति से भय उद्भूत हुआ, जागृत हुआ, जो सोया हुआ था, वह जाग उठा। किन्तु वह उत्पन्न हुआ है मोह के कारण। भय-वेदनीय मोह के कारण भय उत्पन्न होता है। उस व्यक्ति में ऐसे परमाणु संचित हैं जो किसी निमित्त का सहारा पाकर उत्पन्न हो जाते हैं। यह पहले जोड़ने वाली बात है। एक बात बाद में जोड़ें। जो डरता है, जो भयभीत है, वह भय के कारण केवल शारीरिक या मानसिक परिवर्तन ही नहीं करता किन्तु दूसरे परमाणुओं का संग्रह भी करने लग जाता है और इतने परमाणु संग्रहीत कर लेता है जो मोह को और अधिक पोषण देते हैं। कर्मशास्त्र में मोहनीय कर्म के चार आवेग माने हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ। इन्हें 'कषाय-चतुष्टयी' कहा जाता है। ये चार मुख्य आवेग हैं। कुछ उप-आवेग हैं। उनकी संख्या सात या नौ है। हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा और वेद-ये सात या वेद को स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद में हम विभक्त करें तो उप-आवेग नौ हो जाते हैं। इन्हें 'नौ कषाय' कहा जाता है। ये पूरे कषाय नहीं हैं। कषायों के कारण होने वाले 'नौ कषाय' हैं, मूल आवेगों के कारण होने वाले उप-आवेग हैं। ईर्ष्या करना, आदर देना आदि-आदि आवेग हैं या नहीं-यह प्रश्न होता है। कर्मशास्त्र में भी आवेग के रूप में स्वीकृत नहीं हैं। मानसशास्त्र में भी ये आवेग नहीं माने गये हैं। मानसशास्त्रीय परिभाषा के अनुसार ईर्ष्या आदि मूल आवेग नहीं हैं। ये सम्मिश्रण हैं, मिश्रित आवेग हैं। इनमें अनेक आवेगों का एक साथ मिश्रण हो जाता है। ये मूल नहीं हैं। कर्म-शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार भी ये मिश्रित हैं, मूल नहीं हैं। उसके अनुसार मूल आवेग चार और उप-आवेग सात या नौ हैं। . उप-आवेग क्रोध, मान, माया और लोभ जैसे तीव्र नहीं हैं। इनमें आवेग : उप-आवेग 76