________________ के साथ जोड़ा जाये और उस शक्ति-संपन्न सत्ता के रहते हुए ये सारे घटित हों तो हम उस सत्ता को परम सत्ता कैसे कह सकते हैं? प्रत्येक राज्य-व्यवस्था भी यह कामना करती है कि हमारे राज्य में अच्छी से अच्छी व्यवस्था हो, शोषण, न हो, अत्याचार न हो। इसके लिए वह पूरी व्यवस्था करना चाहती है, पर कर नहीं पाती क्योंकि वह सर्वशक्ति-संपन्न होने का दावा नहीं करती। इसलिए यह उसके वश की बात नहीं है। वह व्यवस्था मात्र करती है कि ऐसी अव्यवस्था न हो। अच्छी सरकार का यह लक्षण होता है कि उसके प्रशासन द्वारा अपराधों में कमी हो, बुराइयों में कमी हो और एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के प्रति जो अन्यायपूर्ण व्यवहार या क्रूरतापूर्ण व्यवहार होता है वह कम होता चला जाये। वह सर्वशक्ति-सम्पन्न न होते हुए भी इस प्रकार की व्यवस्था करती है। यदि सर्वशक्ति-सम्पन्न सत्ता हो, सब कुछ करने में समर्थ हो, फिर भी वह इस प्रकार की व्यवस्था न करे कि उसके शासन-काल में, उसके साम्राज्य में, विराट् साम्राज्य में और विश्वव्यापी साम्राज्य में जिसका कोई अतिक्रमण नहीं कर सकता, अपराध भी चले, अन्याय भी चले, क्रूरता भी चले, शोषण भी चले, दमन भी चले और वह सब कुछ चले जो मानवीय सत्ता में चलता है तो फिर यह बहुत चिंतनीय प्रश्न बन जाता है। बादशाह ने बीरबल से पूछा-'बताओ! मेरे में और खदा में क्या अन्तर है?' बीरबल ने कहा-'जहांपनाह! अन्तर बहुत बड़ा है। आप जब मुझसे नाराज होते हैं तो अपनी सल्तनत से मुझे निकाल देते हैं, देश से मुझे निर्वासित कर देते हैं। किन्तु खुदा एक ऐसी हस्ती है जो किसी को अपने देश से नहीं निकाल सकती। खुदा यदि देश-निकाला दे तो कौन कहां जाये? जबकि हम यह मान लेते हैं कि ईश्वर की सत्ता सर्वव्यापी है। इस जगत् का एक कण भी ऐसा नहीं है जहां ईश्वर की सत्ता न हो और यदि देश-निकाला दे दे तो भला कहां जायें?' कृष्ण ने पांडवों से कहा-'मेरे राज्य से चले जाओ। युधिष्ठर आये और बोले-'प्रभो! आप यदि और कुछ आदेश देते तो वह हम सहर्ष मान्य कर लेते, किन्तु आपके राज्य से चले जाने की बात कैसे संभव 42 कर्मवाद