________________ मंगल के विकिरण, चन्द्र के विकिरण, बुद्ध के विकिरण! जितने ग्रह हैं, जितने नक्षत्र हैं, उन सबसे विकिरण आते हैं और हम सब उनसे प्रभावित होते हैं। यदि विकिरणों की बात नहीं होती तो ज्योतिषशास्त्र का आधार ही समाप्त हो जाता। ज्योतिषशास्त्र अवैज्ञानिक नहीं है। यह संभव है कि कोई फलित को ठीक न बता सके। यह सब बताने वाले की अपूर्णता है, न कि ज्योतिषशास्त्र की अवैज्ञानिकता। ज्योतिषशास्त्र की वैज्ञानिकता में कोई संदेह नहीं होता क्योंकि ग्रहों के विकिरणों का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। एक व्यक्ति रमणविद्या का ज्ञाता था। एक बार वह राजा की परिषद् में गया और अपना परिचय देते हुए कहा-मैं रमणविद्या का ज्ञाता हूं। मैं भूत, भविष्य-सब कुछ बता सकता हूं। राजा ने एक क्षण तक सोचा। अपनी मुट्ठी बंद कर राजा ने पूछा-अच्छा बताओ, मेरी मुट्ठी में क्या है? उसने अपना गणित किया। ध्यान को एकाग्र किया। उसे लगा कि मुट्ठी में जो है, उसके एक सूंड है, चार पैर हैं, उसका रंग काला है। उसने कहा- 'राजन्! आपकी मुट्ठी में हाथी है।' सारी परिषद् स्तब्ध रह गयी। मुट्ठी में हाथी! .. रमणवेत्ता का फलित गलत नहीं था। मुट्ठी में जो चीज़ थी, उसके एक सूंड थी, चार पैर थे और रंग काला था। सब कुछ सही था। किन्तु वह इस बात को भूल गया कि मुट्ठी में हाथी कैसे आ सकता है? वह यह भूल गया कि कौन-सी चीज़ कहां, कैसे, किस स्थिति में होती है। वह व्यावहारिक ज्ञान को भूल गया। . राजा की मुट्ठी में मक्खी थी। मक्खी के सूंड भी होती है, चार पैर भी होते हैं और काला रंग भी होता है। किन्तु वह मक्खी को भूल गया। उसने हाथी को पकड़ लिया। सूंड़ आदि की दृष्टि से दोनों समान हैं, किन्तु मुट्ठी में समाने की दृष्टि से दोनों में बहुत बड़ा अन्तर है। मक्खी मुट्ठी में समा सकती है, हाथी मुट्ठी में नहीं समा सकता है। ऐसी भूलें होती हैं। जहां विकिरणों की वैज्ञानिकता का प्रश्न है, जहां विकिरणों का मनुष्य पर होने वाले प्रभाव का प्रश्न है, वहां उसकी सचाई को नकारा कर्म की रासायनिक प्रक्रिया : 1 37