________________ कर्म की रासायनिक प्रक्रिया : 1 आत्मा अमूर्त है और कर्म मूर्त। अमूर्त आत्मा के साथ मूर्त कर्म का सम्बन्ध कैसे स्थापित होता है, सहज ही यह प्रश्न. उभरता है। किन्तु अमूर्त और मूर्त में ऐसा विरोध नहीं है कि अमूर्त के साथ और मूर्त का अमूर्त के साथ सम्बन्ध न हो। सम्बन्ध हो सकता है। आकाश अमूर्त है, किन्तु आकाश का योग प्रत्येक पदार्थ को मिलता है। पदार्थों के आधार पर आकाश का विभाजन होता है। तर्कशास्त्र का एक प्रसिद्ध वाक्य है-घटाकाश, पटाकाश। आकाश असीम है। फिर भी एक है घड़े का आकाश, एक है कपड़े का आकाश, एक है मकान का आकाश-न जाने आकाश की कितनी सीमाएं बन जाती हैं पदार्थों के आधार पर। आकाश का अवगाह, आकाश का आधार प्रत्येक पदार्थ को मिलता है। आकाश से सब द्रव्य उपकृत हैं। यदि आकाश नहीं होता, यह शून्य नहीं होता तो कहीं भी रहने का स्थान नहीं होता। अमूर्त का मूर्त के प्रति उपकार है और मूर्त के द्वारा अमूर्त का परिणमन भी होता है, इसलिए यह बात मान्य नहीं हो सकती कि अमूर्त का मूर्त में कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं हो सकता। अचेतन और चेतन में भी सम्बन्ध स्थापित होता है। चेतन का अचेतन के प्रति कुछ उपकार है तो अचेतन का भी चेतन के प्रति उपकार है। दोनों एक-दूसरे से उपकृत होते हैं। उपकार की बात को शायद आप स्वीकार कर लें, यह संभव है। किन्तु प्रश्न है-एकात्मकता का। यह एकात्मकता कैसे स्थापित होती है? आत्मा और कर्म में, चेतना और पुद्गल में एकात्मकता कैसे स्थापित हो सकती है? ये एक कैसे बन सकते हैं? एकात्मकता दो विरोधी द्रव्यों में कभी नहीं होती। एकात्मकता नहीं होती, सम्बन्ध हो सकता है। तादात्म्य नहीं . 28 कर्मवाद