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गाथा - १५ गाथा – १६, १७ गाथा - १८ गाथा - गाथा -
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२६९
२६९
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गाथा - गाथा - गाथा -
२७०
२७१
गाथा
२७२ २७३
२७३
गाथा गाथा - २६ गाथा - २७ गाथा - २८,२९
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गुणश्रेणी का स्वरूप अनिवृत्तिकरण का स्वरूप प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्ति के लाभ प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्ति पर होने वाला कार्य प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्ति पर किये जाने वाले दलिकसंक्रम का क्रम व विधि कर्मों का होने वाला स्थितिघात आदि कार्य दलिकोदय होने के बाद की स्थिति का वर्णन प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्त होने का फल सम्यादृष्टि का स्वरूप मिथ्यादृष्टि का स्वरूप मिश्रदृष्टि का स्वरूप चारित्रमोहोपशमक का स्वरूप अविरत, देशविरत, सर्वविरत के लक्षण ... देशविरति, सर्वविरति काल का लाभ कैसे प्राप्त होता है ? पतनोन्मुखी जीव की स्थिति का वर्णन अनंतानुबंधी की विस्खयोजना का विचार करने का कारण, विसंयोजक जीवों की विशेषता दर्शनमोहनीय की क्षपणा का स्वामी दर्शनमोहनीय की क्षपणा की विधि दर्शनमोहनीय की क्षपणा का निष्ठापक कौन हो सकता है ? दर्शनमोहक्षपक को कितने भवों में मोक्ष संभव है ? उपशमश्रेणी के स्वामी का प्रकारान्तर से कथन दर्शनमोहत्रिक का उपशमक क्या करता है ? दर्शनमोह-उपशमक की अनिवृत्तिकरण में होने वाली विशेषतायें चारित्रमोह का उपशम करने वाले जीव के स्थितिकंडक का परिमाण
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गाथा - ३० गाथा - ३१
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गाथा - ३२
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गाथा - ३३ गाथा – ३४ गाथा - ३५
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गाथा - ३६
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