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ही लाभान्वित होती है । उनकी जैनधर्म नामक पुस्तक तो जैनेतर समाजके लिये भी एक निर्देश ग्रन्थ बन चुकी है । जयधवला आदि उच्चकोटिके ग्रन्थोंको टीका कर आपने समाजके जनसाधारणके लिये जो उपकार किया है, उसको भावी पीढ़ियाँ कई सदियों तक स्मरण करेंगी ।
ऐसे निस्पृही विद्वान्के अभिनन्दनसे समाज स्वयं ही गोरवान्वित रही है । मेरी कामना है कि पण्डितजी अपने उज्ज्वल जीवनकी शताब्दी मनाते हुए यशोवर्द्धन करें ।
सहृदय पण्डितजी
राजनाथ रसोइया, स्याद्वाद महाविद्यालय, काशी
श्री स्याद्वाद महाविद्यालयके अधिष्ठाता पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्री बड़े ही उच्चकोटिके विद्वान् और महापुरुष हैं वे महात्मा के समान । पण्डितजीका बोल- वचन बहुत ही सच और मधुर है । पण्डितजी द्वारा प्रदत्त पुस्तक रामचरित मानस हम लोगों को बहुत ही प्रिय है । उसे हम अपने घर ले गये तो हमारे गाँवके लोग बड़े प्र ेमसे उसको पढ़ते हैं । हमारे घरके लोग पण्डितजीको बहुत ही आदरणीय मानते हैं ।
एक घटना है कि हमारे पिता बहुत ज्यादा बीमार थे । पण्डितजीसे घर जानेकी छुट्टी माँगी, तो पण्डितजीने कहा— जाओ, देख आओ । अब अच्छे हो गये होंगे । घर गये, तो पिताजी अच्छे हो गये थे । इस प्रकार पण्डितजीके वचन बहुत ही सच निकलते हैं । उनका भोजन शुद्ध और सादा चलता है । कई बार तो बिना नमकका ही भोजन कर लेते हैं, फिर बादमें याद आता है कि नमक नहीं पड़ा था । मगर पण्डितजी कुछ कहते नहीं हैं । अष्टमी - चतुर्दशीको एकाशन रखते हैं । जब पण्डितजी विद्यालय में प्राचार्य थे, तो सुबह छह बजे ही ठंडेके दिनोंमें भी मन्दिर होकर गद्दीपर पढ़ाने बैठ जाते थे । हम समस्त भृत्योंके प्रति पण्डितजीका अच्छा व्यवहार रहा है । वे हम लोगोंकी हर समस्याको सुनते हैं और उसको यथासंभव पूरा करा देते हैं । वे समय-समयपर हमें हर साल कपड़े तथा त्योहारोंपर त्योहारी दिया करते हैं । जब पण्डितजीका साथ छोड़नेकी बात आती है, तो आखोंमें आँसू भर आते हैं ।
मेरी दृष्टिमें पण्डितजी
डॉ० प्रेमसागर जैन, बड़ौत
गौर वर्ण, प्रशस्त ललाट, रोम-रोमसे झलकती प्रतिभा, पाण्डित्यके धनी, एक असाधारण व्यक्तित्व । प्रथम दर्शनमें ही मुग्ध रह जाना पड़ता है । मेरा भी यही हाल हुआ, जब स्याद्वाद महाविद्यालय में पढ़ने गया । सहज श्रद्धा उमगी, तो विनम्र हो जाना स्वाभाविक था । वैसे, संस्कृत विद्यालय विनयके प्रतीक होते हैं । और फिर वह समय ही कुछ ऐसा था, जिसमें अनुशासन भीतरसे फूटता था । पण्डितजी प्रधानाचार्य थे ।
वहाँ मैं ९ वर्ष पढ़ा। पण्डितजी सफल अध्यापक थे । जो कुछ पढ़ाते गलेके नीचे उतर जाता ।
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