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'वितत पक्खा इव गरुड़ जुवई ।'
-जैसे कोई गरुड़-युवती पंख फैलाए भागी जा रही हो ।
दोनों कानोंमें झूलते चमकीले कुण्डल युगलके मध्य स्थित दिव्य आकृतिको वर्णित करते हुए लिखा है-मानो पूनमकी रातमें शनि और मङ्गल नक्षत्रोंके बीच नयनानन्द शारदीय चन्द्र उग आया हो ।
समुद्री तूफानसे प्रताड़ित उछलती-गिरती और डूबती-तैरती नौकाका उत्प्रेक्षाओंके माध्यमसे कितना सजीव चित्र खींचा गया है "ज्ञाता" के नौवें अध्ययनमें
"भयंकर समुद्री तूफानके कारण नौका ऊपर उछलती है और एक झटकेके साथ पुनः नीचे गिरती है; जैसे करतलसे आहत गेंद बार-बार पत्थरके आंगनमें उछलती-गिरती है। ऊपर उछलती हुई वह ऐसी लगती है जैसे विद्या-सिद्ध कोई विद्याधर-कन्या हो और नीचे गिरती हुई वह ऐसी लगती है, जैसे भ्रष्ट कोई विद्याधर बाला आकाशसे गिर रही हो। तेजी से इधर-उधर दौड़ती हुई वह ऐसी लग रही है, मानो गरुड़की तेज गतिसे भयभीत कोई नाग-कन्या इधर-उधर दौड़ रही हो। तीव्र-गतिसे आगे बढ़ती वह ऐसी लगती है; मानो जनताके कोलाहलसे घबराकर कोई अश्व-किशोरी स्थान-भ्रष्ट हो; भागी जा रही हो। ....गांठोंसे टपकते जल कणोंसे वह ऐसी लगती है मानो कोई नवोढ़ा पतिके वियोगमें आंसू बहा रही हो । क्षणभरकी स्थिरतासे वह ऐसी लगती है, मानो कोई योग-परिव्राजिका दूसरोंको ठगनेके लिये कपटपूर्ण ध्यान कर रही हो ।
अस्तु, जहाँ तक मैं सोचती हूँ आगम-साहित्यके प्रति यदि हमारा दृष्टिकोण सम्यक् हो जाता है तो कोई कारण नहीं, उसकी रसात्मकता और लयात्मकतामें भी हमें नीरसता या विसंगतियोंकी प्रतीति हो।
जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है, जैन-आगम विशुद्ध अध्यात्म-शास्त्र है। अध्यात्मकी यात्रा पर यानायित व्यक्ति इनका अनुशीलन कर चैतन्य जागरण-सम्यक्त्वसे लेकर मोक्षप्राप्ति तककी समग्र प्रक्रिया जान-समझ सकता है। फिर भी वर्तमानके सन्दर्भमें यदि हम पूर्व मान्यताओं और प्रतिबद्धताओं से ऊपर उठकर व्यापक दृष्टिसे आगमों का अध्ययन-अनुशीलन करें तो पाएंगे कि आधुनिक युगको सर्वाधिक चर्चित और मान्य सभी ज्ञान-शाखाओं का विकसित और प्रामाणिक आधार हमें यहां उपलब्ध होता है। शरीर विज्ञान (( Physics) गतिविज्ञान ( Dynamics) रसायन-शास्त्र ( Chemistry )
fora ( Mathematics ) चिकित्सा-विज्ञान ( Biology ) मनोविज्ञान ( Psychology ) परामनोविज्ञान ( Parapsychology )
इन समग्र विषयोंसे सम्बन्धित प्रचुर-सामग्री आगमोंमें बिखरी पड़ी है।
१. ज्ञाताधर्मकथा-८४० २. , , ११५६ ३.
९।१०
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