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जी-३१६-इसमें पद्मावती (६०x१० सेमी०) सप्तकणोंके नीचे अद्ध पर्यकासनमें बैठी है। यह चतुर्भुजी है जिनमें वह सनालपद्म, घट खण्डित तथा खिला कमल लिये है। पीठिकापर बाँयी-दाँयी ओर उपासक-उपासिका हैं । बाँयी ओरकी चँवरधारिणीके एक साथमें चँवर तथा दूसरेमें कमल है । दाँयी ओरकी चँवरधारिणीके एक हाथमें चँवर तथा दूसरा कट यावलम्बित है। दोनों ही ओर मालाधारिणी तथा दाँयी ओर विद्याधरदम्पति हवामें उड़ रहे हैं तथा माला लिये हैं। यहाँ बादल (आकाश) का भी आभास दिया है। मध्यमें तीन फणोंके नीचे पार्श्वनाथ हैं जिनके दोनों ओर दो भजी आकृतियाँ बनी हैं। देवी वस्त्राभूषणोंसे मण्डित है तथा उसका मुख तेज विस्तारपूर्ण है। पीछे प्रभामण्डल साटा है। प्रतिमा भूरे पत्थरकी है । इसपर कोई लेख नहीं है।
जी-३१८-यह खड़ी महावीर (९२४ ३२ सेमी०) की काले चमकीले पत्थरसे विनिर्मित मूर्ति है। इसके नीचे सिंह तथा प्रत्येक ओर उपासक-उपासिका सभीका रेखांकन है। इसपर निम्न लेख है :
चित्र ३. महावीर, महोबा, १२२६ ई०
सम्वत १२८३ आषाढ़ सुदि ४ खां नावरान्वये साधु आल्हपुत्र आल्हू तद्भार्या लषमा तस्याः पुत्रः सीढ़ेतस्यार्थे प्रतिमा प्रतिष्ठापिता ।
अर्थात संवत् १२८३ में लषनके पुत्रने प्रतिमा स्थापित कराई।
जी-३१९-यह किसी जिन (४२ x १५ सेमी०) की लघुत्तम प्रतिमा है जो सफेद पत्थरसे बनी है। इसपर कोई लेख नहीं। यह खड़ी प्रतिमा है जिसपर कोई भी चिह्न नहीं बना है। इसपर त्रिछत्र है और कैवल्य वक्ष बना है। चँवरधारियोंके स्थानपर दोनों ओर एकसे सनाल कमलका अंकन है :
जी-३२० तथा जी-३२१- इन दो मूर्तियोंमें (६५४ २५; ५६ ४ २५) दिगम्बर जिन खड्गासनमें दर्शाये गये हैं । इनका प्रस्तर सफेद है । त्रिछत्र ऊपर बना है । बाँयी ओर गगनविहारी मालाधारी विद्याधर
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