Book Title: Kailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Author(s): Babulal Jain
Publisher: Kailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP

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Page 493
________________ earth due to capillarity prove our earth quite FLAT and not spherical or of any other shape. Conclusions. It is correct that modern science has put some proofs before us in support of sphericity of our earth. But these proofs are mostly based upon photographs and observations by sight. Proofs based upon experimental facts have not been given so far. Its proofs are not dependable and reliable due to 'optical illusions'. The proofs which I have given in support of flatness of our earth are all based upon experimental facts and are matters of our daily experience. There is no chance of any optical illusion in my proofs. लेखसार पृथ्वी विषयक आधुनिक मान्यताओं की समीक्षा ज्ञानचंद जैन, दिल्ली हमारे धर्मशास्त्रों में पृथ्वी को चौरस (चपटी), स्थिर, पृथुल तथा चारों दिशाओं में फैला हुआ बताया गया है। इस मान्यता के विपर्याय में जब कापरनीकस ने यह कहा कि पृथ्वी गोलाकार है और स्थिर सूर्य के चारों ओर घूम रही है, तो लोगों ने उसे मूर्ख माना। शताब्दियों बाद उसके अनुयायी गेलीलियो को फांसी दे दी गई। लेकिन यह मान्यता बलवती ही होती गई । इसके बावजूद भी लन्दन में अभी भी 'फ्लैट अर्थ सोसायटी' काम करती है। मैंने पथ्वी की आकृति विषयक वैज्ञानिक अध्ययन किया है और मुझे प्रतीत होता है कि इसका गुरुत्वीय क्षेत्र इसके गोलाकार को प्रमाणित नहीं करता। उदाहरणार्थ, वैज्ञानिक गोलाकार पृथ्वी का एक केन्द्र मानते हैं जो भूतल से 6400 किमी० गर्भ में है। सभी वस्तुयें उस केन्द्र की ओर आकृष्ट होती हैं। वस्तुओं के ऊँचाई से अधःपतन पर उनके आकार में परिवर्तन होना चाहिये, पर यह प्रयोग पुष्ट नहीं होता। इसलिए पृथ्वी के केन्द्र की बात भी नहीं जंचती। इसके विपरीत यह मानना अधिक न्यायसंगत लगता है कि पृथ्वी के गुरुत्वीय आकर्षण बल एक-दूसरे के समान्तर होते हैं तथा भूतल और भूगर्भ दोनों जगह कार्यकारी होते हैं । यह स्थिति पृथ्वी को चपटी मानने पर ही उत्पन्न हो सकती है । अपोलो की उढ़ानों ने भी यही तथ्य सिद्ध किया प्रतीत होता है। हमारी पृथ्वी सभी दिशाओं में और अवनमनों में गुरुत्वीय बलों को आपतित करती है । इसीलिये अवनमनों में भी पिंड गतिशील होते हैं । गोलाकार पृथ्वी की मान्यता में यह संभव नहीं दिखता। न्यूटन और आइन्स्टीन चंद्रमा को पृथ्वी का उपग्रह मानते रहे। लेकिन मैंने अपने जटिल परिकलनों से इस मान्यता को खंडित किया है। इस तथ्य को मैंने रोयल ग्रीनविच वेधशाला को लिखा, जिसे इन्होंने स्वीकार किया है लेकिन उन्होंने अपनी मान्यता में परिवर्तन नहीं किया है। केशिका-प्रभाव के अध्ययन से पता चलता है कि यह प्रभाव तलों के चपटे होने पर ही होता है, गोलाकार होने के कारण नहीं । यदि पृथ्वी गोल मानी जायगी तो उसमें केशिका प्रभाव नहीं होगा। इस प्रकार वैज्ञानिक पृथ्वी के गोलाकार होने के लिये जो प्रमाण देते हैं, वे प्रायोगिक तथ्यों पर आधारित नहीं है, वे केवल प्रकाशीय विभ्रम हैं। -450 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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