Book Title: Kailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Author(s): Babulal Jain
Publisher: Kailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP

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Page 588
________________ şana) of Karma Tattvārthasūtra (Hindi) by Pt. Phool Chandra ji Siddhantashastri, published by Varni Granthmala, Varanasi, First edition pages 395,398-404. Also, see Gommatsāra Karmakānda, Gatha 409. 4. Ibid, Gatha 3. Nokarma is also known as Nimitta 5. Tattuārthasūtra by Umaswami, Chapter 6, Sutra 6. The type of incoming Karma particles depends on the following: (a) intensity of feelings, (b) intentional of unintentional nature of actions, (c) type of pseudo-Karma and (d) capability of the individual. 6. Cosmology : Old and New by Prof. G. R. Jain. published by Bhartiya Jõāna Pitha, 2nd edition, pp. viii-ix. लेखसार जैन धर्म और आधुनिक विज्ञान : एक तुलनात्मक अध्ययन डा० दुलीचन्द्र जैन, या कालेज, न्यूयार्क, अमरीका वस्तुतः विज्ञान और धर्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। धर्म हमें जीवन में जीने की कला सिखाता है। विज्ञान जगत के सभी द्रव्यों और घटनाओं की व्याख्या करने और हमारे जीवन को भौतिकतः सुखी बनाने का प्रयास कर हमारे धार्मिक जीवन को उन्नत बनाने में योगदान करता है। विज्ञान निरीक्षण, परीक्षण एवं सिद्धान्तीकरण को प्रक्रिया द्वारा पूर्वाग्रह रहित पद्धति को अपनाता है एवं हमारे ज्ञान तथा क्रियाओं को प्रभावित करता है। जैन धर्म के अनुसार भी धार्मिक जीवन के लिए रत्नत्रय का मार्ग बताया है। दर्शन निरीक्षण का प्रतीक है, ज्ञान परीक्षण का प्रतीक है और चरित्र इनके प्रयोग और व्यापकीकरण की संभावना का प्रतीक है। - जैन धर्म का कर्मवाद भी कर्मकण और आत्मा के संबंधों के आधार पर जीवन को मुक्ति दिलाने का मार्ग प्रशस्त करता है। कर्मों के साथ नोकर्म भी रहते हैं। इनकी प्रकृति का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। इनकी भिन्नता के कारण ही एक ही कक्षा में पढ़ने वाले तीन विद्यार्थियों का परीक्षाफल भिन्न-भिन्न होता है। वस्तुतः ससारी जीव ही दुःख एवं सुख का अनुभव करता है, परन्तु उसमें ईश्वर बनने की क्षमता है। इन कर्मों का विलगन एवं नये कर्मों का अनागमन ही हमारे जीवन : सकता है। इस विषय पर अब वैज्ञानिक भी ध्यान देने लगे हैं। जैन धर्म का स्याद्वाद आज के सापेक्षतावाद से कहीं आगे हैं । वह तो गूढ क्वान्टम सिद्धान्त का ही एक ईसापूर्व युगीन रूप है। इसके अनुसार, वस्तु या घटना का विवेचन निर्देश बिन्दु पर निर्भर करता है। इसीलिये अनेक विवरण सापेक्षताधारित क्वान्टम यांत्रिकी के आधार पर ही दिये जा सकते है । आज के इन सिद्धान्तों को स्याद्वाद का समान्तर तो माना ही जा सकता है । जैन धर्म के अनुसार, पदार्थ और ऊर्जा एक ही द्रव्य के रूप हैं। क्वान्टमवाद ने यही तर्क तथा गों से सिद्ध किया है। इसी प्रकार, दो कणों के बीच स्थायी संयोग उनके विरोधी विद्युत् गुणों के कारण होता है, यह मान्यता भी पूर्णतः विज्ञान समर्थित है। इस प्रकार जैनधर्म के सिद्धान्त और आधुनिक विज्ञान पर्याप्त अंशों में एक-दूसरे से सहमत हैं । फिर भी, जैन धारणाओं को वैज्ञानिक रूप से अध्ययन करने की पर्याप्त आवश्यकता है। -541 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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