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प्रकाशन कार्यके लिये बिहार सरकार प्रति वर्ष ८० हजार रुपयोंका अनुदान देती है । लेकिन विगत दो-तीन वर्षोंसे प्रकाशनकी सम्पूर्ण राशिका प्रत्यर्पण होता रहा है । फलतः अब सरकारने इस कार्यके लिये मात्र २० हजार रुपये अनुदान देना प्रारम्भ कर दिया है। गत २४ वर्षों में अभी तक केवल १७ पुस्तकोंका प्रकाशन हुआ है :
स्टडीज इन दि भगवतीसूत्र, हरिभद्रके प्राकृत कथा साहित्यका आलोचनात्मक परिशीलन, सदुर्शनचरित, ए क्रिटिकल स्टडी आफ दि पउमचरिउ, अनुयोगद्वारका अंग्रेजी अनुवाद, प्राकृत प्रोज एण्ड पोयट्री सिलेक्सन, रइधू साहित्यका आलोचनात्मक परिशीलन, बुद्धिस्ट एण्ड जैन मोनोथिस्म, इण्डियन लॉजिक, एन इन्ट्रोडक्शन टू कर्पूरमंजरी, वैशाली रिसर्च इंस्टीच्यूट बुलेटिन, फोनेटिक 'चेन्जेज इन इण्डो आर्यन लैंगवेज, ए क्रिटिकल स्टडी आफ दी कुवलयमालाकहा, वैशाली रिसर्च बुलेटिन, रम्भामंजरी और द्रव्यपरीक्षा एवं धातुत्पत्ति ।
इस वर्ष प्रकाशन समितिने निम्न पुस्तकोंके प्रकाशनका निर्णय लिया है, इकोनामिक लाइफ इन एनसियन्ट इण्डिया एज डेपिकटेड इन जैन कैनोनिकल लिटरेचर, रूपककार हस्तिमलः एक समीक्षात्मक अध्ययन, पउमचरिउ और रामचरित मानस और प्राकृत-परिचय ।
मै आशा करता है कि भविष्यमें हमारे संस्थानमें शोधकी नई दिशायें भी विकसित होंगी और इसकी वर्तमान अपूर्णतायें पूर्ण होंगी।
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