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प्रवृत्तनृत्तासु लतागंनासु स्वनत्सु वातेन च कीचकेषु ।
तस्मिन्नुपेते नृपतौ वनं तदारब्धसंगीतमिवावभासे ॥ इसी प्रकार घनी नीली वन राजियोंसे घिरे वनमें भ्रमण करते हये राजा सुरथ नीले मेघ मण्डलके बीच चन्द्र बिम्बके सदृश सुशोभित हो रहे हैं । इस सटीक उपमाको निम्न श्लोक में देखिये :
विशन्वनादेव वनान्तराणि सान्द्र-मश्रोणि निरन्तराणि ।
भाति स्म भिन्नां जनसंनिभानि धनादिवेन्दुर्धनमण्डलानि ॥ इस काव्यमें अलंकार वैविध्यके साथ साथ छन्द वैचित्र्य भी है। इसमें जहाँ अनुरूप, शाशिवनदा, बसन्ततिलका तथा द्रुतविलम्बित जैसे छोटे अति प्रचलित छन्द प्रयुक्त हैं, वहीं पुष्पिताग्रा, उपजाति मन्तमयूर, रुचिरा, मालभारिणी, पृथ्वी, स्रगवणी तथा शार्दूलविक्रीडित आदि लम्बे क्लिष्ट छन्दोंका भी प्रयोग बाहुल्य है । पन्द्रहवें सर्गमें तो विविध छन्दोंके नमूने मिलते हैं ।
इस प्रकार सुरथोत्सव महाकाव्यके सम्पूर्ण तत्वोंसे निर्मित एक ऐसा स्थाई सोपान है जो सोमेश्वर देवको महाकविके पद पर प्रतिष्ठित करने में पूर्णतः सक्षम है ।
कीर्ति कौमुदीका विवरण :-यह सोमेश्वर देवसे रचित एक ऐतिहासिक महाकाव्य है। इस ग्रंथके निर्माणका मूल उद्देश्य गुजरातके महामात्म वस्तुपालकी कीर्तिरूपी जोत्सनाका प्रसार करना है । इस ग्रंथके कथानकका मूलाधार वस्तुपालके जीवनका गौरवान्वित खण्ड है। यह नौ स!में निबद्ध है । नगर वर्णनम्, नरेन्द्रवंशवर्णनम्, मंत्रिस्थापना, दूतसमागमनम्, युद्ध वर्णनम्, पुरप्रमोदवर्णनम्, चन्द्रोदय वर्णनम्, परमार्थविचार और यात्रा समागमनम् । इसके प्रथम सर्गमें कविने स्वयं लिखा है :
विलोक्य वस्तुपालस्य भक्ति चात्मनि निर्भराम् ।
श्रीसोमेश्वरदेवेन तत्स्वरूपं निरूप्यते ।। इस सर्गकी पुष्पिका इसे सोमेश्वर देवकी रचना प्रमाणित करती है :
"इति श्रीगूर्जरपुरोहित श्रीसोमेश्वरदेव विरचिते कीर्तिकौमुदीनाम्नि महाकाव्ये नगरवर्णनोनाम प्रथमः सर्गः।"
सुरथोत्सवकी भाँति कीर्ति कौमुदीका रचनाकाल भी कविने स्वयं नहीं लिखा है। इसमें खंभातके उस युद्धका वर्णन है जो १२२१ ई० के लगभग वस्तूपाल और शंख चाहमानके बीच हुआ था । इस ग्रंथके नायक महामात्य वस्तुपाल हैं जिन्होंने अनेकों स्मारिकों एवं मंदिरोंका निर्माण कराया। इससे प्रकट होता है कि इस काव्यकी रचना १२२३-२४ ई. के निकट हुई होगी। वस्तुपालकी जिह्वामें सरस्वतीका वास था। वे काव्य मर्मज्ञ एवं काव्यस्रष्टा थे, इसका उल्लेख भी कविने काव्यमें किया है। स्तम्भ तीर्थ पर ग्रीष्मऋतु के आगमन पर मंत्री वस्तु पालने निदाधकी निन्दा पर कवितायें लिखी :
कविप्रियोऽसौ प्रथयांचकार,
निन्दां निदाघस्य जलप्रियस्य । इस काव्यके नवें सर्गमें वस्तुपालका शत्रुजय पर्वतों पर आरोहण, नेमिनाथ आदि दैवोंकी पूजा तथा नेमिनाथ, पार्श्वनाथ आदिके मंदिरों व प्रतिमाओंके निर्माणका वर्णन किया है।
उल्लाघ राघवका विवरण-सोमेश्वर देवने इस नाटककी रचना अपने पुत्र लल्ल शर्माकी प्रार्थना । पर की थी। यह इसके प्रशस्ति श्लोकोंमें कहा गया है :
तदंगजः स्वांगजलल्लशर्म, प्रयुक्तया प्रार्थनया प्रणुन्नः । कार सोमेश्वरदेवनाम्ना रामायणं ताटकरूपमेतत् ।।
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