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नकोव भी जैनधर्मके अध्ययनमें व्यस्त हैं कुछ समय पूर्व उन्होंने रूसी भाषामें अनुदित आचार्य हरिभद्रका धूर्ताख्यान प्रकाशित किया था। इसका संशोधित संस्करण अतिशीघ्र प्रकाशित हो रहा है। इनका जैन साहित्य पर एक निबन्ध शार्ट लिटररी एन्साइकोलोपीडियामें भी प्रकाशित हुआ है। अमरीकामें जैनविद्याएँ
अमेरिकामें केलिफोनिया विश्वविद्यालयके साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज विभागके आचार्य प्रो० पद्मनाभ एस० जैनी, जैनधर्मके मर्मज्ञ विद्वान हैं । उन्होंने जैनधर्म पर बहुत शोध कार्य किया है। उनके अनेक शोधपत्र और कुछ ग्रन्थ भी इधर प्रकाशित हुये हैं । उन्होंने अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय सम्मेलनों में जैनसिद्धान्तोंका तुलनात्मक उपस्थापन किया है । अभी कुछ समय पूर्व ही वे भारत आये थे। वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालयके स्नातक हैं तथा वे लन्दन और मिशिगन विश्वविद्यालयोंमें भी कार्य कर चुके हैं । आप पिछले बीस वर्षोंसे विदेशोंमें जैनविद्याओंके अध्यापन एवं अध्ययनमें लगे हुये हैं।
यहाँ होनोलुल स्थित हवाई विश्वविद्यालय भी भारतीय एवं जैन विधाओंका एक प्रमुख केन्द्र बना हुआ है । कुछ समय पूर्व यहाँ काशीके डा० सक्सेना भारतीय दर्शन पढ़ाते थे। उनसे अनेक छात्रोंने जैनविधाओंके अध्ययनमें प्रेरणा प्राप्त की।
फिलडेल्फिया विश्वविद्यालय बहत समयसे भारतीय विधाओं तथा जैन विद्याओंके अध्ययनका केन्द्र रहा है। इस समय वहाँ डा० अर्नेस्ट बेन्डर इस क्षेत्रमें काफी कार्य कर रहे हैं। वे भारत भी 3 यहाँके विश्व जैन मिशनसे आप अत्यन्त प्रभावित रहे है। आपके अहिंसा ओर जैनधर्म से सम्बन्धित अनेक लेख व कुछ पुस्तकें प्रकाशित है। वे प्राच्यविद्याओंसे सम्बन्धित एक अमेरिकी शोधपत्रिकाके सम्पादक भी हैं।
आजकल जैनविधाओंके प्रचार-प्रसारके लिये डा० चित्रभानु तथा मुनि सुशीलकुमार जी ने भी कुछ वर्षोंसे न्यूयार्क में जैन केन्द्र स्थापित किये हैं। यहाँ जैन ध्यान विद्या, आचार एवं तर्कशास्त्र पर प्रयोग और शोधको प्रेरित किया जाता है। फ्रान्समें जैनविद्याएँ
पेरिस विश्वविद्यालय (फ्रान्स) के जैन एवं बौद्ध दर्शन विभागकी शोध निर्देशिका डा. कोले कैले, प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं तथा जैन दर्शनकी विदुषी हैं। गत अनेक वर्षोंसे वे उक्त विषयोंमें शोध कार्य कर रही हैं। आपने मुनिराजसिंह रचित पाहडदोहाका आलोचनात्मक टिप्पणियोंके साथ अंग्रेजी अनुवाद किया है जो एल० डी० इंस्टीच्यूटकी शोध-पत्रिका सम्बोधि (जलाई, १९७६) में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने अपने एक फ्रेन्च भाषाके निबन्धमें दोहापाहडमें अभिव्यक्त जैन सिद्धान्तोंका भगवद्गीता, उपनिषद् आदि ब्राह्मणग्रन्थोंमें उपलब्ध सिद्धान्तोंसे तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। आपने स्टाकहोम और कोपनहेगन विश्वविद्यालयोंमें जैनधर्म में उल्लेखना विषय पर कुछ भाषण दिये थे जो ऐक्टा औरियन्टेलिया में एक बृहत् निबन्धके रूपमें प्रकाशित हुये हैं। आपने जैनविद्याओंसे सम्बन्धित अनेक भाषाओंके ग्रन्थोंकी समीक्षा भी की है। आपके मार्गदर्शनमें फ्रान्समें जैनविद्याओंके अध्ययनका भविष्य उज्जवल होगा। उनके द्वारा लिखित फ्रान्समें जैनविद्याओंके अध्ययनके विकासात्मक इतिहासको इसी ग्रन्थमें अन्यत्र दिया गया है। अन्य देशोंमें जैनविद्याएँ
बैल्जियमके घेन्ट विश्वविद्यालयने भारतीय विद्या विभागके आचार्य प्रो० जे० ए० सी० डेल जैन
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