________________
कारणोंसे ब्राह्मण मन्दिरोंमें अश्लील विषयको स्थान मिला था, तब भी जैन देवालयोंमें शुद्ध सात्त्विक और पवित्र भावनामय सुन्दर मूर्तिकलाको स्थान मिला था । सौन्दर्यकी दृष्टिसे मन्दिरोंकी प्रधान मूर्तियाँ महत्त्वकी नहीं हैं । पर मन्दिरोंकी बाहरी दीवालोंपर आवरण रूपमें रची हुई जो अन्य देवताओंकी मूर्तियाँ होती हैं, वे आकर्षक होती हैं ।
तीर्थंकरोंकी मूर्तियों में एक प्रकारकी निर्द्वदिता और भव्यता प्रकट होती है। मूर्तियोंके पत्थरोंमें या मूर्तियों में किसी प्रकारका दोष नहीं होना चाहिये । घरको मूर्ति बारह अंगुलसे बड़ी न हो । मूर्तियोंके उपर तीन छत और मूर्तियोंके दोनों ओर यक्ष तथा यक्षी होनी चाहिये ।
कलाकी दृष्टिसे जैन मूर्तियोंमें श्रवणबेलगोलको बाहुबलीकी मूर्ति सबसे उल्लेखनीय है । इसे बनाकर शिल्पीने रसात्माको सन्तुष्ट किया है । इसके लिये वीर मार्तंड चामुंडराय धन्यवादके पात्र हैं । बाहुबलीकी उल्लेखनीय दो मूर्तियाँ और हैं कारक्लमें और दूसरी वेणूरमें । कलाकी दृष्टिसे ये मूर्तियाँ भी महत्त्वकी हैं । जैन मूर्तियों में पटनाके लोहनीपुर में प्राप्त मूर्तियाँ सर्वप्राचीन हैं ।
खजुराहो
यहाँपर घंटाई जैनमन्दिर भारतकी उच्च कारीगरीका साक्षी है । इसके खम्भों में पर घंटा और जंजीर उकरे हुए हैं, इसलिये यह घन्टाई मन्दिरके नामसे प्रसिद्ध है । छतपर प्रदर्शित भगवान जिनेन्द्रकी भक्ति गाती हुई भक्तिपूर्ण नृत्य करती हुई और विविध वादन यन्त्रोंकी बजाती हुई भक्तमंडलियाँ वस्तुतः दर्शनीय हैं । आदिनाथ मन्दिर के सबसे उपर वाले भाग में प्रदर्शित विद्याधर मूर्तियां भी रोचक एवं आकर्षक हैं ।
I
यहाँका पार्श्वनाथ मन्दिर सबसे बिशाल और सुन्दर है । गर्भगृहकी बाहरी दीवालोंपर बनी देवियोंकी मूर्तियाँ मूर्तिकलाके उत्कृष्ट नमूने हैं । उत्तरी माथेपर बनी हुई मूर्तियोंमें एक माता अपने बच्चेको दुलार रही है, एक महिला पत्र लिख रही है, एक बालक एक महिलाके पैरसे काँटा निकाल रहा है । ये सब मूर्तियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं ।
Jain Education International
- ३४४ -
MA
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org