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एक समयकी स्थितिवाले होते हैं, वे पुदगल स्कंध संकोच और विकोच रूप अवगाहनाके विचारसे कालसापेक्ष अप्रदेशी होते हैं । (११)
जितने भी परिणाम होते हैं, उन सभीमें परिणत 'एक समय में स्थितिवाले पुद्गल स्कंध या पुद्गल काल-सापेक्ष अप्रदेशी होते हैं। अतः भावसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंसे कालसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गल असंख्य गुण सिद्ध होते हैं । (१२,१३) काल-अप्रदेशी पुद्गलोंसे द्रव्य-अप्रदेशी पुद्गल असंख्य गुणे होते हैं
काल-सापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलों या पुद्गल-स्कंधोंसे द्रव्य-सापेक्ष अप्र देशी पुद्गल (परमाणु) असंख्य गुणे होते हैं । इन पुद्गलोंकी चार राशियाँ मानी गई हैं :
१. अणुओंकी राशि, २. संख्यात-अणु-स्कंधोंकी राशि, ३. असंख्यात-अणु-स्कंधोंकी राशि, ४. अनंताणुस्कंधोंकी राशि ।।
अनन्त अणु-स्कंधोंकी ये चार राशियां हैं। जिन जिन संख्यात-अणु-स्कंधोमें प्रदेशरूप परमाणु हैं, वे उन संख्यात-अणुस्कन्धोंके संख्येयतम भागमें विद्यमान रहते हैं। इसी प्रकार, जिन स्कन्धोंमें असंख्येय अण विद्यमान रहते हैं, वे उन असंख्येयाणुस्कन्धोंके असंख्येयतम भागमें विद्यमान रहते हैं। कल्पना कीजिये कि परमाणुओंकी राशि एक-सौ है। उसका संख्येयतम भाग बीस, असंख्येयतम भाग दस तथा अनंततम भाग पाँच है। इस प्रक्रियासे द्वयणुक स्कन्धसे लेकर संख्याताणुस्कन्ध पर्यन्त उस स्कन्धके सापेक्ष संख्येयतम भागमें अणु विद्यमान रहता है । इसी प्रकार असंख्येयतमाणु-स्कंधके विषयमें जानना चाहिये । वस्तुतः परमाणु अनंत हैं। संख्याताणुस्कन्धसे असंख्यात या अनंत अणुस्कन्धोंकी उत्पत्ति परिकल्पित की जाती है । अन्यथा संख्याताणुस्कन्धके सापेक्ष असंख्येय भाग या अनंत भागमें अणु नहीं होंगे। अतः काल सापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंसे द्रव्य सापेक्ष अप्रदेशी पुद्गल अनंत होते हैं । (१७-१९) द्रव्य-अप्रदेशी पुद्गलोंसे क्षेत्र-अप्रदेशी पुद्गल असंख्यगुण होते हैं
द्रव्यसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंसे क्षेत्रसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गल असंख्यगुणे होते हैं क्योंकि सभी पुद्गल “एक-एक आकाश प्रदेश में व्याप्त होनेकी स्थितिमें क्षेत्रसापेक्ष अप्रदेशी हो जाते हैं । इनसे क्षेत्र सापेक्ष सप्रदेशी पुद्गल असंख्यगुणे होते हैं क्योंकि सप्रदेशियोंके अवगाहनास्थान अधिक होते हैं। इनके अधिक होनेसे इनमें उतने ही अधिक परमाणु या पुद्गल स्कन्ध समा सकते हैं। अतः वे क्षेत्र-अप्रदेशियोंसे असंख्यगुणे हैं । (२०-२२)। वैपरीत्यसे सप्रदेशी पुद्गलोंका विशेषाधिकत्व
___अभी अप्रदेशी पुद्गल विवेचनमें 'भाव' को आदिमें रखा गया था। परन्तु सप्रदेशी पुद्गल विवेचनमें क्षेत्रको आगे रखा जाता है। अतः क्षेत्रसापेक्ष सप्रदेशी पुदगलोंसे द्रव्यसापेक्ष सप्रदेशी पुद्गल विशेषाधिक होते हैं। द्रव्यसापेक्ष सप्रदेशियोंसे कालसापेक्ष विशेषाधिक होते हैं। कालसापेक्ष सप्रदेशियोंसे भावसापेक्ष सप्रदेशी विशेषाधिक होते हैं। इसका कारण यह है कि भाव, काल, द्रव्य और क्षेत्र सापेक्ष अप्रदेशित्वमें क्रमशः जितनी संख्या बढ़ती है, उतनी ही संख्या सप्रदेशित्व अवस्थामें घट जाया करती है । कल्पना कीजिये-एक लाख पुद्गल हैं। उनमें भाव, काल, द्रव्य और क्षेत्र सापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंकी सख्या क्रमश एक, दो, पाँच और दस हजार हैं। परन्तु सप्रदेशित्व अवस्थामें उतनी ही संख्याके घट जानेसे भाव, काल, द्रव्य और क्षेत्र सापेक्ष सप्रदेशी पुद्गलोंकी संख्या क्रमशः ९९,९८,९५ और ९० हजार हो जायगी। इस दृष्टिसे जैसे भी संभव हो, सप्रदेशी-अप्रदेशी पुदगलोंका अर्थोपन्यास करना चाहिये । यहाँ केवल कल्पनाके रूप ही पुद्गलों की संख्या एक लाख मानी गई है । वस्तुतः वह तो अनंत ही है । (२४-३६) ब्रेकेटमें दी हुई संख्यायें गाथाक्रमांकके निर्देश हैं।
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