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इसी d व्यासके वृत्तके भीतर अधिगम a हो, तो अन्तश्चक्रवाल-वृत्तका क्षेत्र
___ = (d-a)x3xa महावीरने दोनोंका एक उदाहरण दिया है :
व्यासोऽष्टादशहस्ताः, पुनर्बहिनिर्गतास्त्रयस्तत्र ।
व्यासोऽष्टादशहस्ताश्चान्तः पुत्ररधिगतास्त्रयः किं स्यात् ।। (ग० सा० सं०, ७।२९) यहाँ d = 18 और a = 31 बहिःचकवाल-वृत्तका क्षेत्र = (18+ 3)x 3x3
___-189 वर्गहस्त अन्तःचक्रवाल-वृत्तका क्षेत्र = (18 - 3)x 3x3
= 135 वर्गहस्त स्मरण रखना चाहिये कि इन सब उदाहरणोंमें पाई (ग) का मान स्थूलतया ३ माना गया है । इसे /10 या ३,१४१६ (आर्यभटका) मान लेनेपर प्रश्नोंके उत्तर कुछ भिन्न होंगे।
महावीरने गणितसार-संग्रहके सप्तम अध्यायमें अन्य आकृतियोंके क्षेत्रों और परिक्षेपोंके निकालने लिये भी नियम दिये हैं जो गणितज्ञों के विशेष कामके हैं। ये आकृतियाँ निम्न हैं :
यतमुरजपणवशक्रायुधसंस्थानप्रतिष्ठितानां तु।
मुखमध्यसमासार्धं त्वायामगुणं फले भवति ॥ (ग० सा० सं०, ३।३२) . यव, मुरज (मृदङ्ग), पणव, वज्र । इनके लिये सामान्य नियम यह है : मुख पर चोड़ाई = a, मध्यमें चौड़ाई - b, पूरी लम्बाई (आयाम) =c, तो क्षेत्रफल = (a+b)xc
यवसंस्थानक्षेत्रस्यायामोऽशीतिरस्य विष्कम्भः । मध्यश्चत्वारिंशत्फलं भवेत् कि समाचक्षत ।।
(ग० सा० सं०, ७।३३) ------+----- रख
मान लो यव (जौ के आकारका क्षेत्र) की लम्बाई ८० है, बीच में चौड़ाई ४० है, दोनों नोकों या शीर्षों पर
चौड़ाई शून्य है । अतः क्षेत्रफल = (0+ 40x80)x चित्र ६. यव
80 = 1600 वर्गहस्त ।
क
आयामोऽशीतिरयं दण्डामुखस्य विंशतिमध्ये । चत्वारिंशत्क्षेत्रे मृदंगसंस्थानके ब्रूहि ।।
(ग० सा० सं०, ७।३४) भृदंगके आकारके क्षेत्रकी लम्बाई ८० दण्ड है, किनारों
पर मुख २० दण्डका है और बीचमें मान ४० दण्डका है। चित्र ७. मृदंग या मुरज फलतः
क्षेत्रफल = 1 (a + b)xc a = 20; b = 40; c= 80 क्षेत्रफल = 1 (20 + 40)x 80
=2400 वर्गदण्ड
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