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५३ मिनट ( लगभग २६ १ / ४ मुहूर्त ) तथा अधिकतम समय मघा नक्षत्रका २७ घंटे २ मिनट (लगभग ३३ ३/४ मुहूर्त ) है ।'
७. दिनकी वृद्धि हानि :- गाथा ३०५-३१० के अनुसार दिनरात के तीस मुहूर्त्त में दिन और रातकी अवधि बदलने का जो क्रम है, उसमें न्यूनतम दिन और न्यूनतम रात्रिकी अवधि में बारह मुहूर्त्त और अधिकतम अवधि अठारह मुहूर्त बताई गई है । आधुनिक नापमें यह क्रमसः ९ घंटे ३६ मिनट और १४ घंटे २४ मिनट होती है । वर्तमान निरीक्षणोंके अनुसार दिन और रातका अंतर अक्षांशोंके अनुसार बदलता है । यहाँ जो अंतर बताया गया है, वह वर्तमान भारतकी उत्तरीसीमाके अक्षांश ३५ के लिए सही है । यह निरीक्षण उस समयकी ओर संकेत करता है जब उस प्रदेशकी राजधानी तक्षशिला विद्याका केन्द्र थी । भारतके मध्यभागमें स्थित जबलपुरमें दिन और रातकी न्यूनतम और अधिकतम अवधि १० घंटे ३५ मिनट और १३ घंटे २५ मिनट है । 3 इसके दक्षिणमें यह अंतर और कम होते हुए भुमध्यरेखा पर शून्य हो जाता है - वहाँ दिन-रात समान होते हैं । उत्तर में यह अंतर बढ़ते हुए ६६.६ अक्षांश पर २४ घंटे हो जाता है - वहाँ २२ जूनको २४ घंटेका दिन और २४ घंटेकी रात २२ दिसम्बरको होती है । उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर इससे भी अधिक छह मासका दिन और उतनी ही बड़ी रात होती है ।
गाथा १९४-१९५ के अनुसार सूर्यका परिभ्रमण मार्ग जम्बूद्वीपकी परिधिके १८० योजन भीतर है और अधिकतम परिभ्रमण मार्ग जम्बूद्वीपकी परिधिके ३३० योजन बाहर है अर्थात् इतने क्षेत्र में सूर्यकिरण लम्बरूप पड़ सकते हैं । वर्तमान गणनाके अनुसार, पृथ्वीके जिस क्षेत्र में सूर्यकिरण लंबरूप पड़ सकते हैं, उसकी उत्तर सीमा कर्कवृत्त और दक्षिण सीमा मकरवृत्त है । कर्कवृत्त भारतके लगभग मध्य में हैं जिसकी दक्षिण समुद्र तटसे दूरी लगभग एक हजार मील अर्थात् १२५ योजन है । मकरवृत्त इस दक्षिण समुद्र तटके दक्षिण में लगभग दो हजार मीलपर अर्थात् २५० योजनपर है । कर्कवृत्त पर सूर्य किरण लम्बरूप पड़ते हैं, उस दिनसे दक्षिणायन और मकरवृत्तपर सूर्य किरण लम्बरूप पड़ते हैं उस दिनसे उत्तरायणका आरम्भ होता है ।
१. ये नक्षत्रोंकी अवधियाँ श्री रामचन्द्र अग्रवाल के जबलपुर पंचांगके अनुसार हैं ।
२. भारतीय ज्योतिषका इतिहास ( गोरख प्रसाद, लखनऊ, १९५६, १९५६), पृ० ४६ । वेदांग ज्योतिषमें यही अवधि मिलती है ।
३. ये अवधियाँ भी श्री अग्रवालके पंचांगके अनुसार हैं । भारतके विभिन्न अक्षांशोंमें सूर्योदय समय अंतरकी सारणी स्वामिकन्तु पिल्लने इण्डियन एफिमेरीजके प्रथम खंड में दी है । ४,५. भुगोलके भौतिक सिद्धांत ( ए० दासगुप्त, दिल्ली १९७४), पृ० ३३ से ३७ ।
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