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आचार्य महावीरको रेखागणितीय उपपत्तियाँ
स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती, इलाहाबाद जैन गणितज्ञोंमें सबसे अधिक ख्याति गणितसार संग्रहके रचयिता महावीरकी है। अन्य जैन गणितज्ञोंमें अभयदेवसूरि, सिंह तिलक सूरि और अमरसिंह यतिके नाम प्रसिद्ध हैं। त्रिशतिकाको टीका करनेवाले वल्लभ भी जैन थे, और उन्होने टीका तेलगु भाषामें की थी। सिंहतिलक सुरि, (१२७५ ई०) ने श्रीपतिके गणिततिलककी टीका की, कुछ जैनविद्वानोंने श्रीधराचार्यको भी जैन माना किन्तु स्पष्टतया पाटीगणितके रचयिता श्रीधरजी शैव हिन्द्र थे । अभयदेवसरि (१०५० ई०) ने प्रसिद्ध जैनग्न सूत्रकी टीकामें श्रीधरका नाम तो नहीं लिया, किन्तु श्रीधरकी पाटीगणित और त्रिशतिका-इन दोनों ग्रन्थोंसे उद्धरण दिये हैं (सदृश द्विराशिघात; २४, २८; समत्रिराशिहति; ११, १५)। प्राचीन भारतीय गणितज्ञोंकी पूर्वापरता निम्न सन-संवतोंसे प्रकट होती है। वखसाली हस्तलिपि २०० ई०, प्रथम आर्यभटका आर्यभटीय (जन्म ४७६ ई०), भास्कर प्रथम (६२९ ई०), ब्रह्मगुप्तका ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त, (६२८ ई०), पृथूदक स्वामी नामक भाष्यकार (८६० ई०), स्कन्दसेन (जिसका उल्लेख पृथूदकस्वामीने अपने भाष्यमें किया है) नवीं शती ई० से पूर्व, लल्लकी पाटीगणित और सिद्धान्ततिलक (८वीं शती ई०), गोविन्दकी गोविन्दकृति (९वीं शती ई०), लघुभास्करीयके टीकाकार शंकर नारायण (८६९ ई०) और उदयदिवाकर (१०७३ ई०), महावीरका गणितसारसंग्रह (८५० ई०), श्रीपतिका गणिततिलक और सिद्धान्तशेखर (१०३९ ई०), भास्कर द्वितीयकी लीलावती (११५० ई०), आर्यभट्ट द्वितीयका महासिद्धान्त (९५० ई०), और नारायणकी गणितकौमुदी (१३५६ ई०)
महावीरका गणितसार-संग्रह ग्रन्थ गणितके विशेषज्ञोंके लिये बड़े कामकी वस्तु है। यह प्राचार्य कन्नड़ प्रदेशका जैन विद्वान् था । आर्यभट्ट और भास्कर एवं ब्रह्मगुप्तके समान आचार्योंने गणितका अध्ययन ज्योतिषके परिप्रेक्ष्यमें किया था, किन्तु महावीरका गणितसारसंग्रह और श्रीधराचार्यके पाटीगणित
और त्रिशतिका ग्रन्थ विशुद्ध गणितके ग्रन्थ हैं । जैनधर्मके आचार्य गणितशास्त्रके स्वतन्त्र अध्ययनको भी प्रारम्भसे महत्त्व देते आये हैं। यह ठीक है कि वे यह भी स्वीकार करते हैं कि गणितका ज्योतिषमें भी उपयोग है, पर गणितके अध्ययनका स्वतः अपना भी एक क्षेत्र है। महावीरके समय तक ब्रह्मगुप्तकी प्रतिष्ठा सर्वमान्य हो गयी थी, पृथूदक स्वामीने ब्रह्मस्फुटसिद्धान्तका भाष्य किया। यह आचार्य भी महावीरका लगभग समकालीन था। दोनों ही ८५०-८६० ई० के कालके हैं। श्रीधराचार्य महावीरके ग्रन्थसे परिचित था, कई क्षेत्रोंमें उसने महावीरके गणितीय कार्यको परिवद्धित भी किया। गणितसार-संग्रहमें जो बात महावीरने ६ श्लोकोंमें दी है, श्रीधरने उसे अपनी त्रिशतिकामें ४ पंक्तियोंमें ही समाप्त कर दिया है। श्रीधरकी ये चार पंक्तियाँ निम्न हैं (त्रिशतिका, उदाहरण २६) :
कामिन्या हारवल्लयाः सुरतकलहतामोक्तिकानां त्रुटित्वा । भूमी यातस्त्रिभागः शयनतलगतः पञ्चमांशश्च दृष्टः आत्तः षष्ठः सुकेश्या गणकदशमकः, संगृहीतः प्रियेण ।
दृष्टं षट्कञ्च सूत्रे कथय कतिपयौक्तिकैरेष हारः । गणितसार-संग्रहमें यही प्रश्न १२ पक्तियोंमें है । (४।१७-२२)
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