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(२) भूधरका आत्मप्रबोधन गीत
भगवन्त भजन क्यों भूला रे? यह संसार रैन का सुपना, तन-धन वारि-बबूला रे । भगवन्त भजन क्यों भूला रे ? इस जीवनका कौन भरोसा, पावक में तृण पूला रे । काल कुदार लिये सिर ठाँडा, क्या समझै मन फूला रे । भगवन्त भजन क्यों भूला रे? स्वारथ साधै पाँच पाँव तू, परमारथको लूला रे । कहु कैसे सुख पैहैं प्रानी, काम करै दुखभूला रे । भगवन्त भजन क्यों भूला रे? मोह पिशाच छल्यों मति मारै, निज कर कन्ध बसूला रे । भज श्रीराजमतीवर भूधर, दो दुरमति सिर धूला रे । भगवन्त भजन क्यों भूला रे ?
भूधरदास, अध्यात्मपदावली, पृ० २४३ दौलतरामका जगनिस्सारता द्योतक गीत छाँड़ि दे बुधि भोरी वृथा तन से रति जोरी ॥ टेक ॥ यह पर है न रहै थिर पोषत, सकल कुमल की झोरी या मों ममता करि अनादिसे, बन्धो करम की डोरी ।। सहै दुख जलधि हिलोरी ॥ छाँडि० ।। ये जड़ हैं तू चेतन यों ही, अपनावत बरजोरी । सम्यग्दर्शन ज्ञान चरन निधि, ये हैं सम्पति तोरी ।। सदा विलसो शिवगोरी ॥ छाँड़ि ।।। सुखिया भये सदीप जीव जिन, या सों ममता तोरी । दौल सीख यह लीजै पीजै, ज्ञान पियूष बटोरी ।।
मिटे पर चाह कठोरी ।। छाँड़ि०॥ (३) भागचन्द्र कविका पश्चात्तापकी अभिव्यक्ति परक पद
मो सम कौन कुटिल खल कामी । तुम सम कलिमल दलन न नामी । हिंसक झूठ वाद मति विचरत, परधन हर परवनिता गामी । लोभी चित नित चाहत धावत, दशदिश करत न खामी। रागी देव बहुत हम जाँचे, राँचे नहि तुम साँचे स्वामी । बाँचे श्रुत कामादिक पोषक, सेये कुगुरुसहित धन धामी । भाग उदय से मैं प्रभु पाये, वीतराग तुम अन्तरयामी । तुम धुनि सुनि परजय में परगुण जाने निज गुण चित विसरामी । तुमने पशु-पक्षी सब तारे, तारे अंजन चोर सुनामी ।
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