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है। अशोक स्तम्भकी लाटको कमल पंखुड़ियोंसे ही अकृत किया गया है। गांधार शैलीमें भी कमलकी गोमूत्रिकायें (बेलें) विद्यमान हैं। कहीं-कहीं विकसित कमलके अन्दर मानवीय आकृतियाँ अंकित मिलती हैं। एक मूर्तिमें शेषशायी विष्णुके पैरके पास आधार रूपमें कमल अंकित है। हंसके साथ कमल तो बहुत ही ज्यादा सहज सुलभ है। दमयन्तीने कमल पत्र पर पाती लिखकर हंस द्वारा नलके पास भेजी थी।
भरहत और साँचीके रिलीफोंमें हाथी मायादेवीके गर्भ में है और उसके मुखसे टेढ़ी-मेढ़ी कमलकी बेल निकली है । यह मुण्डेरों और चौखटोंके किनारे-किनारे फैली हुई है और उसपर अनेक तमगे, जन्मकथाएँ तथा फलोंकी सजावट है। अनेकानेक पत्तियों, कलियों, विभिन्न विकसित पुष्पों तथा बीच-बीचमें बत्तखोंवाले कमलके पौधोंका अत्यधिक फैलाव भरहुत, साँची, उदयगिरि और अमरावती-हर जगह पाया जाता है। आधिक्यके साथ कोमलता तथा चपलताके साथ गांभीर्यका सम्मिश्रण यूरोपीय नारीकी याद दिलाता है । साँचीके पूर्वी तोरणके बाँयें खम्भे पर कमलके पौधोंके पकने तककी अवस्थाओंका बहुत ही सुन्दर चित्रण है।
____ कमलके फूलते हुए पौधेका लयात्मक ढंगसे झूमना भारतमें जीवनकी अपेक्षा लयका प्रतीक है । साँचीके पश्चिमी द्वार पर कमलको बेलके घने पतोंके मध्य वन्य पशओंकी प्रकृति सन्दरतम है।
कमल-लता पौधा-प्रतीकोंमें सबसे अधिक प्रचलित और प्रभावशाली है। यह कमल-लता मन्थर, अबाध और प्रचुर भारतीय वनस्पति जीवनका प्रतीक है। भारतीय संस्कृतिमें कमलकी स्वाभाविक प्रचरता का एक ग भीर अर्थ है । संयुक्तनिकायमें लिखा है, "हे बन्धु, जैसे कमल पानीमें उगता है, पानीमें ही फलता है, पानीकी सतहसे ऊपर उठता है और फिर भी पानीकी सतहसे नहीं भीगता, वैसे ही हे बन्धु, तथागत संसारमें जन्मे इस संसारमें बढ़े, इसी संसारमें ऊपर उठे और फिर भी इस संसारसे अप्रभावित रहे।" बौद्ध कल्पनामें ब्रह्माण्ड है बुद्धके अनेकानेक जन्म और अमर्त्य रूप। ये कमलके पौधेके डंठलों और फूलोंके समान सुन्दर और शाश्वत हैं तथा सांसारिक राग, द्वेष और मोहके कीचड़ और गन्दगीसे उगते हैं। संसार और निर्वाण, अच्छाई और बुराई, सुख और दुःखके चक्र यथार्थकी क्षणिक बूंदें अथवा उफान हैं । जीवन यथार्थ और ज्ञात सीमाओंसे परे एक पर्णताकी ओर सदैव गतिशील है। स्वर्गिक सफेद हाथी. जिसके मुखसे कमलकी बेल निकलती है, यह धीरे-थीरे बिना रुके लयात्मक ढंगसे प्रचुरताकी सृष्टि करती है, निर्वाण की शान्तिका नहीं, वरन् जीवनकी अबाधित हर्षोत्फुल्ल असीम आकांक्षा प्रतीक है। प्रकृतिकी व्यवस्थामें आत्माभिव्यक्ति और आत्मपरात्परताके बोधिसत्त्वका प्रतीक है।
अजन्ताके चित्रोंमें जो बोधिसत्त्व हाथमें नीलकमल लिये हए । , संजमके केन्द्रमें अवस्थित है। यहाँ सिरका तनिक भव्य झुकाव, गतिके लिए तनिक स्पन्दित शान्त मुद्रा तथा हाथकी उत्कृष्ट भंगिमा संसारके प्रति बोधिसत्वकी प्रगाढ़ करुणाके प्रतीक है। बोधिसत्व पद्मपाणि मानवके शारीरिक सौन्दर्यका ही नहीं, वरन् आध्यात्मिक और अमूर्त सौन्दर्यका उत्तम नमूना है। कमलकी चौकियों पर खड़ी कुछ बुद्ध की प्रतिमाएँ अमरावती, मथुरा और गांधार-तीनों स्थानों पर मिलती है। सूर्यकी कुछेक खड़ी मूर्तियोंमें धुरीकी जगह कमलने ले ली । गुप्तकालके बाद दो कमलोंसे युक्त मूर्ति भी पूज्य व मान्य हुई।
रानीगुप्फा और गणेशगुप्फाके शिल्पकारोंको कमलके फुल्लोंसे विशेष रुचि थी, अतः वेदिका तथा शोभापट्टीमें उनकीरुचि प्रदर्शित हुई हैं।
खण्डगिरी पहाड़ी पर अनन्त गुफामें कपिशीर्षक या पंचपट्टिकाके बीचमें त्रिकोणाकृतिका एक सुन्दर कमल पुष्प अंकित है जिसकी बेलमें वेदिका, पुनः कमल, फिर वेदिका इस प्रकारका क्रम है । इनमें
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