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हैं। इन जैन मूर्तियोंमें तीर्थंकर ऋषभ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ पार्श्व एवं महावीरके अतिरिक्त नेमिनाथकी यक्ष अम्बिका एवं पार्श्वकी शासनदेवी पद्मावती, एक चौबीसी और एक त्रितीर्थी विशेष रूपसे उल्लेखनीय हैं । इन मूर्तियों से आठ प्रतिमाओंके नीचे लेख खुदा पाते हैं । इनके वर्णन यहाँ प्रस्तुत हैं ।
जी- ३०४—यह नेमिनाथ ( ९२ ३४ सेमी ० ) की कायोत्सर्ग मुद्रामें, काले पत्थरकी प्रतिमा है । इसके नीचे उपासक एवं उपासिका हाथोंमें कमल लिये हैं । उससे ऊपर एक-एक चँवरधारीका रेखांकन है । चरण चौकीके लेखके बीचमें शंखका विलेखन है जो यह पुष्टि करता है कि यह नेमिनाथकी प्रतिमा है । इसका लेखन निम्न है : सम्वत् १२८३ आषाढ़ सुदि ८ (ज) रवी नावरान्वये साधु आल्हभार्या प्रभतयोः पुत्रः साधु आल्हू भार्या इति पुत्र साढं देवपतेनि शंख त्वं प्रणमति ॥
अर्थात् सम्वत् १२८३की आषाढ़ सुदि अष्टमी रविवारको नवरान्वयके साधु जाल्हकी पत्नी आदि नेमिनाथको नित्य प्रणाम करती हैं ।
जी - ३०५ - यह ध्यानस्थ ऋषभनाथ ( ६६ x ५१ सेमी ० ) की मूर्ति काले पत्थरकी बनी है । इसके नीचे बैल बना है । मूर्तिका श्रीवत्स अन्य मूर्तियोंमें भिन्न प्रकारका है । इसके नीचे निम्न प्रकारका लेख है ।
चित्र १. आदिनाथकी मूर्ति, महोबा, ११७१ ई०
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नावरान्वये साधजीज्ञतस्य सुत सेष्ठियासाज्ञणः
शीघेतस्य सुत सा सूल्हानिर्त्य प्रणमति १२२८ जेष्ठसुदि १ रूपकार केल्हलः अर्थात् १२२८ जेष्ट सुदि १ को इस मूर्ति की स्थापना की गई तथा मूर्तिकार केल्हल ।
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