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उपर्युक्त लाच्छन निम्न अरहतोंको निरूपित किये जा सकते हैं स्वस्तिक शीतलनाथ जी ; विहग ( पड़रुवा) सुमतिनाथजी, मत्स्य, अरहनाथजी, पद्म, पद्मनाथजी; शंख, नेमिनाथजी, वज्र, धर्मनाथजी हैं । शेष विशिष्ट मांगलिक चिन्ह हैं जिनमें श्रीवत्स प्रत्येक तीर्थकरके वक्षपर विद्यमान रहता है ।
अभिलेख बाईं ओर तालवृन्त अथवा व्यजन तथा दाहिनी ओर स्वस्तिक है । अभिलेखका अभिप्राय अस्पष्ट है । इसके आधार पर इन मांगलिक चिन्होंकी तिथि दूसरी पहली शती ई० पू० निर्धारित की जा सकती है । अतः स्पष्ट है कि बुन्देलखण्ड में जैनधर्मका प्रचलन प्राचीन है । इस क्षेत्रमें सर्वेक्षणकी अत्यन्त आवश्यकता है । यह सम्भव है कि यहाँ जैनधर्मके स्तूप तथा प्राकृतिक गुफाओंमें और भी अवशेष मिल सकेँ । लेखकी प्रतिलिपि निम्न है । जिसे भ (ड) क बु पढ़ा गया है ( भारतीय पुरातत्त्व पत्रिका, पृ० ५३-७४, १९७१-७२) ।
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