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सांस्कृतिक और धार्मिक क्षेत्रमें अनेक जैन महिलाओंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सरसेठ हुकुमचन्दकी धर्मपत्नी कंचनबाईकी आर्थिक मददसे अनेक जैन संस्थाएँ चल रही हैं । दक्षिण भारत में श्रीमती रत्नवर्मा हेगड़ेके धार्मिक कार्य उल्लेखनीय हैं । धर्मस्थलमें ४१ फुटकी भगवान महावीरकी संगमरमरकी मूर्ति आपने ही स्थापित की है ।
औद्योगिक क्षेत्रमें भी जैन महिलाएँ पीछे नहीं हैं । आज अनेक कारखानोंके व्यवस्थापनके पदों पर वे कार्य करती हैं । उदाहरणके लिये, श्रीमती सरयु दफ्तरी एक फैक्टरीका नियन्त्रण करती हैं । बम्बई और अनेक बड़े शहरोंमें जैन महिलाओंके द्वारा स्थापित छोटे-छोटे कार्यरत उद्योग हैं ।
इसी प्रकार जीवनके प्रत्येक क्षेत्रमें जैन महिलाएँ कार्य कर रही हैं । अनेक महिलाओंमेंसे मैं परिचित हूँ परन्तु स्थानाभावसे यहाँ सबका उल्लेख संभव नहीं है । संक्षेपमें, जैन महिलाओंने सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक-सभी क्षेत्रोंमें महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं ।
आजकी महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्रमें आगे बढ़ने का प्रयत्न कर रही हैं । वे प्रगतिशील विचारोंकी हैं। मैं मान्य करती हूँ फिर भी, महिलाओंके प्रति मेरे मनमें कुछ सुझाव हैं ।
यह
बीसवीं शताब्दीकी प्रगतिशीलताकी पहली और प्रमुख माँग है - पुरुषके समान सभी क्षेत्रों में समान Sarfararat माँग । यह माँग कोई ठुकरायेगा नहीं। लेकिन अधिकारकी माँगके साथ हमें अपने कर्तव्यको भी नहीं भूलना चाहिये । अधिकार और कर्तव्य — ये दोनों एक ही सिक्केके दो पहलू हैं । विकासकी गन्ध सबको समान मिले, इसे कोई भी अमान्य नहीं कर सकता । परन्तु साथमें सब कर्तव्यपालनमें तत्पर हो, इसे भी मानना आवश्यक है ।
सामाजिक कार्य व नेतृत्व करनेके साथ-साथ महिलाओंको आदर्श गृहिणीका कार्य भी करना है । आधुनिक शिक्षाग्रहण करने के साथ-साथ महिलाओंको धार्मिक विचार सम्पन्न बताना भी अत्यावश्यक है क्योंकि ऐसी महिलाएँ भी अपने बच्चोंको संस्कार सम्पन्न नागरिक बना सकती हैं । हमें पाश्चात्य वैज्ञानिक ज्ञानका अनुकरण करना चाहिये । परन्तु सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रमें हमें उनका अनुकरण नहीं करना है । क्योंकि भारतीय समाज के अपने कुछ सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्य हैं । इन मूल्योंको ग्रहण करने - के लिये पाश्चात्य जगत भारतकी ओर देखता है। ऐसी दशामें पाश्चात्य रहन-सहन व सामाजिक रचना कर हमें अन्धानुकरण नहीं करना चाहिये । भारतमें कुटुम्ब संस्थाकी उज्ज्वल परम्परा है । पाश्चात्य अनुकरणके द्वारा इस कुटुम्ब संस्थाका हम नाश न करें, तो अच्छा है । सम्पूर्ण भारतीय संस्कृतिका रक्षण इसी कुटुम्ब संस्थाने किया है, इसे हमें नहीं भूलना चाहिये । अमेरिका जैसे भौतिक दृष्टिसे उन्नत देशों में कुटुम्ब संस्थाके पुनर्गठनकी माँगकी जा रही है । क्योंकि इन देशोंमें स्वतन्त्रताके नाम पर माता, पिता, बच्चेसब अलग-अलग रूपमें बिखर रहे हैं । पारस्परिक सम्बन्ध केवल आर्थिक बनकर रह गये हैं। पर एक दूसरेमें ईश्वर में आस्था न होनेके कारण पाश्चात्य लोगोंका जीवन और निराशापूर्ण बनता जा रहा है । इस समस्याको दूर करनेके लिये अमेरिका जैसे देश भारतकी ओर देख रहे हैं। यह हमें उनका अन्धानुकरण करते समय सोचना चाहिये ।
भारतीय बालक-बालिकायें संस्कार पूर्ण आदर्श नागरिक बनें इसकी जिम्मेदारी महिलाओं पर है क्योंकि माता ही बच्चोंके लिये पहला गुरु होती हैं । गृहिणियों में भगवान् महावीरका सन्देश हमेशा ध्यान में रखना चाहिए । आध्यात्मिक ज्ञानसे ही मानसिक विकास सही दिशामें होता है । ऐसी ज्ञान सम्पन्न माता ही अपने बच्चेको उच्चसंस्कार सम्पन्न नागरिक बना सकती है । परदेश जाते समय महात्मा गांधीको उनकी
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