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भाँति 'मानस' में सीताकी अग्नि परीक्षाका परवर्ती प्रसङ्ग आगे नहीं बढ़ पाया । रविषेणके राम अन्त में केवली होते हैं जब कि तुलसीके रामका अन्त आख्यान में समाविष्ट नहीं हो पाया ।
तुलसीको रामकथा कतिपय पात्र यथा मंथरा, शवरी, अनसूया, सम्पाति, वसिष्ठ, विश्वामित्र, शिव, निषाद, काकभुशुण्डि और सुलोचनाको रविषेणने नगण्य स्थिति प्रदान कर दी है। दोनोंने ही श्रेष्ठ तथा साहित्यिक संस्कृत तथा अवधी भाषाकी निदर्शना की है । वीर रसके वर्णनमें रविषेण तुलसीसे आगे हैं । 'पद्मपुराण' में 'मानस' से दुगुने से भी अधिक छन्दोंका उपयोग हुआ है । रविषेणने कतिपय छन्दोंको स्वयं निर्मित किया है ।
दोनों 'मानव हितार्थ धर्मका विधान करते | 'पद्मपुराण' में भारत के सुख-शांति - वैभवकी समन्वित संस्कृतिका वास्तविक चित्र है और 'मानस' में आदर्शनिष्ठ संस्कृतिका ।
'नानापुराण निगमागम सम्मतं यद्रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि के आधारपर यह अनुमान है कि शायद तुलसीने 'पद्मपुराण' को भी देखा हो । यह तो नहीं कहा जा सकता कि रविषेणने तुलसीको प्रभावित किया था परन्तु, चूँकि, जैन कवि बनारसीदास उनके परिचित मित्र थे, अतएव, उनके माध्यम से तुलसीने 'पद्मपुराण' की कतिपय उक्तियाँ सुनी या पढ़ी हों । तुलसीपर जैनधर्मका कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।
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