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अन्तिम बीसवाँ राजा था। इन्द्रप्रस्थमें अनंगपाल नामके तीन राजा हए जिनमेंसे प्रस्तुत अनंगपाल तीसरा था। इससे जिस हम्मीर वीरको पराजित किया था, प्रतीत होता है कि वह कांगड़ा नरेश हाहुलिराव हम्मीर रहा होगा, जो एकबार हुंका भरकर अरिदलमें जा घुसता था और उसे रौंद डालता था। इसी कारण हम्मीरको हाहुलिरावकी संज्ञा प्रदान की गयी थी जैसा कि पृथिवीराजरासोमें एक उल्लेख मिलता है :
"हां कहते ढीलन करिय हलकारिय अरि मध्य ।
ताथें विरद हम्मीरको “हाहुलिराव' सुकथ्य ।। सम्भवतः इसी हम्मीरको राजा अनंगपालने हराया होगा । युद्ध में उसके पराजित होते ही उसके अन्य साथी-राजा भी भाग खड़े हुए थे जैसा पासणाहचरिउमें कहा है :
सेंधव सोण कीर हम्मीर संगरू मेल्लि चल्लिया ।।छ। (पास०, ४।१३।२) अर्थात् सिन्धु, सोन एवं कीर नरेशोंके साथ राजा हम्मीर भी संग्राम छोड़कर भाग गया।'
डिल्ली-दिल्ली-विबुध श्रीधरने पासणाहचरिउमें जिस “ढिल्लो" नगरकी चर्चा की है, वह आधनिक "दिल्ली"का ही तत्कालीन नाम है। कविके समयमें वह हरयाणा प्रदेशका एक प्रमुख नगर था। पृथिवीराजरासोमें पृथिवीराज चौहानके प्रसंगोंमें दिल्लीके लिए 'ढिल्ली' शब्दका ही प्रयोग हुआ है । उसमें इस नामकरणकी एक मनोरंजक कथा भी कही गयी है, जिसे तोमरवंशी राजा अनंगपालकी पुत्री
। पथवीराज चौहानकी माताने स्वयं पथवीराजको सुनायी है। उसके अनुसार राज्यकी स्थिरताके लिए एक ज्योतिषी के आदेशानुसार जिस स्थानपर कीली गाड़ी गई थी, वह स्थान प्रारम्भमें "किल्ली"के नामसे प्रसिद्ध हुआ, किन्तु उस कीलको ढीला कर देनेसे उस स्थानका नाम ढिल्ली पड़ गया, जो कालान्तरमें दिल्लीके नामसे जाना जाने लगा। अठारहवीं सदी तक दिल्लीके ग्यारह नामोंमेंसे “ढिल्ली" भी एक नाम माना जाता रहा, जैसा कि इन्द्रप्रस्थप्रबन्धमें एक उल्लेख मिलता है :
शक्रपन्था इन्द्रप्रस्था शुभकृत् योगिनीपुरः । दिल्ली ढिल्ली महापुया जिहानावाद इष्यते ॥ सुषेणा महिमायुक्ता शुभाशुभकरा इति ।
एकादस मित नामा दिल्ली पुरा च वर्तते ॥ (पद्य १४-१५) इस प्रकार पासणाहचरिउमें राजा अनंगपाल, राजा हम्मीर वीर एवं ढिल्लीके उल्लेख ऐतिहासिक दृष्टिसे बड़े महत्वपूर्ण हैं । इन सन्दर्भो तथा समकालीन साहित्य एवं इतिहासके तुलनात्मक अध्ययनसे मध्यकालीन भारतीय इतिहासके कई प्रच्छन्न अथवा जटिल रहस्योंका उद्घाटन सम्भव है।
__ हरयाणा एवं ढिल्लीकी भौगोलिक स्थिति तथा कविकी साहू आल्हण तथा साहू नट्टलके साथ मर्मस्पर्शी भेंट-प्रस्तुत रचनाकी आद्यप्रशस्तिके अनुसार कवि अपनी 'चंदप्पहचरिउ'की रचना समाप्तिके बाद कार्य-व्यस्त असंख्य ग्रामोंवाले हरयाणा प्रदेशको छोडकर यमना नदी पार कर ढिल्ल था। वहाँ सर्वप्रथम राजा अनंगपालके एक मन्त्री साह अल्हणसे उसकी भेंट हई। साह उसके 'चंदप्पहचरिउ'का पाठ सुनकर इतना प्रभावित हुआ कि उसने कविको नगरके महान साहित्यरसिक एवं प्रमुख सार्थवाह साहू नट्टलसे भेंट करनेका आग्रह किया। किन्तु कवि बड़ा संकोची था। अतः उसने उससे भेंट
१. विशेषके लिए देखिये, भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित तथा लेखक द्वारा सम्पादित वडढमाणचरिउ
की भूमिका, पृ० ७०
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