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कौटिल्यके अर्थशास्त्रसे विदित होता है कि उसके पहले सत्रह प्रमुख आचार्य हो चुके थे जिन्होंने धर्म तथा राजनय आदि विषयों पर अपने स्वतन्त्र मत स्थापित किये गये थे। प्रतीत होता है कि इनमेंसे अधिकांश आचार्य मगधके ही थे।
महावीर स्वामीके सन्देशका प्रचार जैन आचार्य परम्पराने विशुद्ध रूपमें किया । गुप्त शासन कालमें मुख्य राजधानी मगधके पाटलिपुत्र नगरमें रही। गुप्तकालके शासकोंने प्राकृतके स्थान पर संस्कृतको राजभाषा बनाया। जैनाचार्यों तथा अन्य लेखकोंने समयकी माँगके अनुरूप अपनी रचनाओंका माध्यम संस्कृतको बनाया। इसी प्रकार, ब्राह्मी लिपिको देशकी मुख्य लिपि बनानेका सौभाग्य प्राप्त हुआ।
जैनाचार्योंके अलावा मगध क्षेत्रके समृद्ध जैन श्रेष्ठियोंने जैन धर्मके विस्तारमें महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । अनेक श्रेष्ठि महोदधि (बंगालकी खाड़ी)के मार्गसे दक्षिण-पूर्व एशियाके देशोंमें व्यापारके लिए जाने लगे । विदेशोंसे अजित धनका विनियोग उन्होंने देशके विभिन्न भागों में जैनधर्मके प्रसार हेतु किया। उन जैन व्यापारियोंका दृष्टिकोण राष्ट्रवादी था। राष्ट्रकी राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक उन्नतिको उन्होंने अपने धर्मका अङ्ग मान लिया था ।
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