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जादूगर पण्डितजी
रतनलाल कटारिया, केकड़ी मेरे प्रिय जैन लेखकोंमें-श्री मुख्तार सा०, प्रेमीजी और डॉ० ए० एन० उपाध्येजी जो सब दिवंगत हो चुके हैं-के बाद विद्वत सम्राट, साहित्यचक्रवर्ती पं० कैलाशचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री ही प्रमुख हैं। मैं इनकी रचनाओंको अत्यन्त मनोयोग पूर्वक रुचिके साथ एक ही बारमें आद्योपान्त पढ़ जाता है । जो मजा एक मनोरंजक उपन्यासके पढ़ने में आता है, उससे भी कई गुना ज्यादा आनन्द और रसास्वादन इनकी कृतियोंके अध्ययनमें आता है। ये अध्यापनके भी जादुगर हैं। इन्होंने अपना सारा जीवन इसीमें व्यतीत किया है। इनके द्वारा शिक्षित हजारों शिष्य इनका नाम रोशन कर रहे हैं । ये अध्ययनके भी जादूगर हैं । इनका शास्त्राध्ययन मामूली चलता-सा नहीं है किन्तु मार्मिक, ठोस और गम्भीर है जिसमें शोध-खोज तुलनात्मक ऐतिहासिक विकासक्रम परक दृष्टि, रहस्योद्घाटन, चिन्तन-मनन, विश्लेषण, समीक्षण, त्रुटिनिष्कासन, समन्वयीकरण, विचार-विमर्श आदि अनेक तत्व हैं। इसीके आधारपर वे कलमके जादूगर बने
और दो दर्जनसे अधिक ग्रन्थोंका प्रणयन किया। इसी तरह ये शास्त्रके वाचनके भी जादूगर है। शास्त्रकी गद्दीपर बैठकर शास्त्र बाँचनेवालेमें जो गुण आगममें बताये हैं, उसके ये अधिकारी है।
उत्तर प्रदेशके बिजनौर जिलेमें नहटोर ग्रामके लाला मुसद्दीलालजी अग्रवालके घर कनिष्ठ पुत्रके रूपमें संवत् १९६० सन् १९०३ कार्तिक शुक्ल १२ को आपका जन्म हुआ था। आपकी धर्मपत्नीका नाम वसंती देवी है जिनसे एक पुत्र रत्न है जो विवाहित हैं और उच्च पदपर हैं। उनके अनेक गुणोंकी मैं यहाँ पुनरावृत्ति नहीं करना चाहता। मैं माँ सरस्वतीसे प्रार्थना करता हूँ कि आप शतायु हों तथा समाजको आपका हितकारी मार्गदर्शन एवं साहित्य भंडारको आपके ज्ञानरत्न बराबर मिलते रहें।
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