________________
नेन्द का जीवन दर्शन
पक्ति-चेतना और काल-खण्ड के ऊपर उठने की चेष्टा
जैनेन्द्र के साहित्य द्वारा कालखण्ड गौर ग्यक्ति चेतना से ऊपर उठने की नेता है। वर्तमान मे नधा हुया व्यक्ति शाश्वत सत्य के राग्नाला मे को पक्षा निर्णय नही दे पाता । पतएव जनेन्द्र के अनुसार माहित्य गम गामाता के प्रति सापेक्ष दृष्टिकोण रखते हा गमगानीन नही होगा 17 | 3 प्रादश समयोत्तीर्ण होकर ही युग सत्य बन सकता है।' गोरनामी नागीदास द्वारा विरचित 'रामनरित मानरा' नार सौ वर्षों के बाद गाज भी अपनी समयोत्तीर्णता के कारण उसी प्रकार ग्राह्य है, जैसे कि ततमी के युग मे था । शाश्वत सत्य को चिरस्थायी रखने के लिए उसे कात-लड मे मीमित नही रखना होगा। ___ जैनेन्द्र का जीवन-प्रादर्श उत्तरोत्तर गखण्डता की ओर उन्मुग हाता है। आत्मोपलब्निी मे व्यक्ति, त्यक्त जगत के बन्धन से मुक्त हो परम प्रतरग मे साक्षात्कार करता है। जीवन यदि वर्तमान से सम्बद होता नो हार की अखण्डता स्वय मे ही नि शेष हो जाती। जैनेन्द्र ने कानरम ऊपर उठने की चेष्टा की है। आधुनिकता गथवा नवीनता की दाप गाने के गोम में वे स्वय को किमी युग-विशेष के घेरे में प्राबद्द करके नही चलते । मानित और नवीन कहलाने के लोभ में प्राज साहित्य के क्षेत्र में पुराने के उन्मुलन तथा नितान्त नवीन की स्थापना के हेतु कान्ति हो रही है। रिट नखक' भी जैनेन्द्र को रीतिकाल मे स्थान देकर माधुनिकता की पताका ऊनी करते है। फिन्तु माधुनिक से तात्पर्य यदि वर्तमान मे ही है, तो वह दिन स्वय मे ही विनष्ट हो जायेगा। व्यक्ति अथवा साहित्य भुत को सस्कृति रूप मे स्वय मे समाहित करता हुआ भविष्य का आलिगन करता है। युगविशेष का डका पीटने वाला साहित्य शाश्वत सत्यो की प्रतिष्ठापना नहीं कर सकता। जैनेन्द्र की प्रात्मा सदैव काल की अनन्तता मे ग्वो जाने के लिए व्याकुल रही है। व्यष्टि को समष्टि मे समाकर शून्य में विलीन हो जाना ही उनके जीवन का तय है। उन्होने स्वीकार किया है कि "मै कभी भी प्रावुनिक नही होना चाहता, क्योकि काल से तत्सम होना चाहता हु। काल के खण्द्र को लेकर तुष्ट और मग्न नही हो जाना चाहता। वे काल को भूत, वतमान
१ जैनेन्द्रकुमार 'समय और हम', दिल्ली, १९६२, प्र०म०, पृ० ५०३ । २ कमलेश्वर 'नई कहानी की भूमिका', इलाहाबाद, १६६६, पृ०१२ । ३ जैनेन्द्र के साक्षात्कार के अवसर पर। ४ जैनेन्द्रकुमार 'कहानी अनुभव और शिल्प', पृ० ६० ।