Book Title: Jainendra ka Jivan Darshan
Author(s): Kusum Kakkad
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 265
________________ २६० जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन होता है, यथा--'कल्याणी' मे एक करुण मुस्कराहट के भाव से उनका चेहरा पीला पड गया । उपरोक्त करुण मुस्कराहट से कल्याणी के अन्तस् की पीडा ओर द्वन्द्व सहज ही मुखरित हो उठता है । जैनेन्द्र के साहित्य मे मनोविज्ञान के प्रभाव के कारण वस्तुता से अधिक अन्त प्रकृति पर बल दिया गया है। ____ जैनेन्द्र से पूर्व के उपन्यासकारो ने मनोविज्ञान की आवश्यकता का अनुभव नही किया । जैनेन्द्र ने मनोविज्ञान के शास्त्रीय रूप का अनुगमन न करके व्यावहारिक रूप को ही अपनाया है । मनोविज्ञान के प्रभाव के कारण लेखक की अभिव्यक्ति के रूप मे भी अन्तर दिखायी देना स्वाभाविक ही है। जैनेन्द्र के साहित्य मे विषय-विस्तार और पात्रो की सख्या का अभाव है । एक क्षण की अनुभूति भी कहानी का विषय बन जाती है। व्यक्ति-विशेष के जीवन की घटना भी उपन्यास का विषय बनती है । जैनेन्द्र को उपन्यास-रचना के लिए पीढीदर-पीढी सम्बन्ध ढूढने की आवश्यकता नही हुई । उनकी कहानी तथा उपन्यासो मे बिखराव से अधिक सघनता है । पात्र भी भावाभिव्यक्ति मे विस्तार से अधिक सकेत से काम चला लेते है । प्रेमचन्द के उपन्यासो मे पात्रो की सख्या इतनी अधिक होती है कि उनमे बहुत से चरित्र अपने उत्कष पर पहुंचे बिना बीच मे ही समाप्त हो जाते है। कथा का अन्त दिखाने मे लेखक के समक्ष कठिनाई उपस्थित होती है, किन्तु जैनेन्द्र के साहित्य मे ऐसी स्थिति नही है। उनके उपन्यासो मे पात्रो की भीड देखने को नहीं मिलती। मनोवैज्ञानिक लेखक के लिए ऐसा सम्भव भी नही हो सकता। यही कारण हे कि जैनेन्द्र के साहित्य मे अन्तर्द्वन्द्व प्रधान है। ___ जैनेन्द्र के पात्रो का व्यक्तित्व सदैव सम्भाव्य होता है। उनके सम्बन्ध मे पूर्ण निर्णय नही प्रस्तुत किया जा सकता । वे एक ऐसी अनबूझ पहेली है, जिन्हे समझना मुट्ठी मे बाधना है। उनके जीवन के सम्बन्ध मे अनन्त सम्भावनाए है। वे पूर्व निश्चित मार्ग पर चलने के लिए बाध्य नही है, वरन् परिवर्तनशील जीवन के सत्यो और भावी जीवन की सम्भावनाओ की ओर उत्सुकता बनाए रहते है। प्रेमचन्द ने जिस पात्र को प्रारम्भ मे जिस स्तर का गढ दिया है, वह अन्तत उसी स्तर का बना रहेगा। आदर्श समझा जाने वाला पात्र अतत कभी भी कोई त्रुटि नही करता। जैनेन्द्र के पात्र इस कृत्रिमता से वचित है। जैनेन्द्र प्रेमचन्द के सान्निध्य मे रहते हुए भी उनकी परिपाटी का अनुसरण नही कर सके है। जैनेन्द्र के अनुसार प्रेमचन्द अपने पात्रो के चरित्र की सक्षिप्त रूप-रेखा पहले से ही अपनी डायरी मे लिख लेते थे, यथा . 'दमयन्ती साधारण सुन्दर । शील का गर्व रखती है। कम पर तेज बोलने वाली है। वात्सल्यमयी

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