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जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन
व्यक्तित्व मे हिसा के भाव या कर्म के लिए अवकाश नही रहता । जैनेन्द्र की दृष्टि मे मानव-व्यक्तित्व की अखण्ड युक्तता कठोरता मे नही, वरन् कोमलता मे ही है। उनका विश्वास है कि कठोरता मे से एकाग्रता की साधना करने वाले तपस्वी अन्त मे टूटते ही है। उनकी एकाग्रता प्रेम की स्निग्धता के अभाव मे शुष्क होकर टूट जाती है । जैनेन्द्र के उपन्यास और कहानियो मे ऐसे व्यक्तियो की अपूर्णता पर अनेकानेक स्थलो पर वर्णन किया गया है।
व्यक्तित्व अखण्ड
जैनेन्द्र के साहित्य मे बार-बार व्यक्तित्व की समग्रता पर ही बल दिया गया है । क्योकि उनकी दृष्टि मे सच्चाई पूर्णता मे ही है । झूठ के आग्रह द्वारा सच बनाने का प्रयास नही किया गया है । जहा ऐसी स्थिति लक्षित होती है, वहा आग्रह अतत पराभूत होते हुए देखा जाता है। जैनेन्द्र की दृष्टि मे 'जिन्दगी एक साबत चीज है उसमे खाने नही है, विभाग नही है। वह अखण्ड है ओर समग्र है। अखण्डता में भी जीवन की सार्थकता है किन्तु अखण्डता बुद्वि द्वारा अग्राह्य है और व्यक्ति अपने ज्ञान के दर्प के कारण पूर्णता को खण्ड-खण्ड मे विभाजित करके जानने के प्रयत्न मे लगा ही रहता है। जैनेन्द्र की दृष्टि मे सत्य मे जानता कुछ नही है, सब होना है। यदि उसे जानना ही होता तो सम्भवत वह सत्य ही नहीं रहता। विभाजन की यह प्रक्रिया वैज्ञानिक क्षेत्र मे ही नही परिमित होती। जैनेन्द्र के अनुसार नैतिकता व्यक्ति-सापेक्ष्य है। व्यक्ति के जीवन को नैतिक और अनैतिक के आधार पर उच्च और निम्न स्तरो मे विभाजित करके परखा जाता है। हमारे शास्त्रो मे भी विभाजन की यह प्रक्रिया स्पष्टत दृष्टिगत होती है। त्रिगुणात्मक सृष्टि की चर्चा श्रीमद्भागवतगीता मे भी मिलती है। गुणो की प्रकृति का विश्लेषण करते हुए यह समझना कि सत्वगुण प्रधान व्यक्ति का जीवन विषय-विकार से हीन होता है तथा तमोगुणीव्यक्ति मे सात्विक गुणो के दर्शन नही होते, नितान्त अस्वाभाविक प्रतीत होता है। जैनेन्द्र की दृष्टि मे व्यक्तित्व सत्य रज और तम मे विभाजित नही है । ये तीनो व्यक्तित्व के ऐसे गुण है जिन्हे विभाजन-रेखा द्वारा विभाजित नही किया जा सकता। जैनेन्द्र ने सत्य, रज और तम के रूप की बडी सुन्दर अभिव्यक्ति की है। उनकी दृष्टि मे तीनो गुण जीवनरूपी मजिल के तीन खण्डो
१ जैनेन्द्र कुमार 'समय और हम', पृ० स० १२५ । २ जैनेन्द्रकुमार 'समय और हम', पृ० स० १२७ । ३ जैनेन्द्र कुमार 'इतस्तत', पृ० स० २५७ ।