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जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन
क्रान्ति के द्वारा लायी जाने वाली समानता के पक्ष मे नही है। उनकी दृष्टि मे इस प्रकार की समानता ऊपर से थोपी हुई है। इसलिए कभी-न-कभी उसकी प्रतिक्रिया की सम्भावना बनी ही रहेगी। इसीलिए जैनेन्द्र परिस्थिति अोर समस्या को लेकर किये जाने वाले सुधार के पक्ष मे नही हे । उनकी दृष्टि मे यदि सुधार होना ही है तो वह व्यक्ति की अन्तश्चेतना मे ही होना चाहिए । यदि व्यक्ति के मन मे ही स्वार्थ की भावना न होगी तो वह स्वत ही आदर्शोन्मुख प्रतीत होगा। वस्तुत सुधार की भावना अन्त प्रसूत होनी चाहिए। इसका मूल आधार व्यष्टि द्वारा समष्टि के प्रति विसर्जित होने मे ही लक्षित होता है । मार्क्स की समस्या अर्थ प्रधान थी। जैनेन्द्र ने भी अर्थ को महत्वपूर्ण माना है, किन्तु उनकी दृष्टि मे अर्थ ही साध्य नही हो सकता, इस प्रकार वे अर्थ और काम को मार्ग मे ही मानते है। उनके अनुसार धर्मपूर्वक अर्थ और काम के मार्गो से गुजरते हुए मोक्ष की ओर उन्मुख होना ही जीवन का लक्ष्य है।
जैनेन्द्र के विचारो पर यदि किसी का प्रभाव पडा है तो वह गाधी जी है। जैनेन्द्र गाधी से प्रभावित है, पर गाधीवाद से बधे नही है। उन्होने विचारो का सार ग्रहण किया है, वाद से स्वय को जडित नही किया है। इसीलिए वे गाधी से इतना प्रभावित होते हुए भी अपने को गाधीवादी नही मानते । गाधी की अहिसा-नीति, सर्वोदय भावना, कुटीर उद्योग, अद्वैत निष्ठा, आत्मपीडन आदि का प्रभाव जैनेन्द्र के साहित्य मे स्पष्टत दृष्टिगत होता है । जैनी होने के कारण जैनेन्द्र पर धर्म का प्रभाव पडना भी स्वाभाविक भी है, किन्तु वे जैन धर्म से प्रभावित होते हुए भी उसकी मान्यताप्रो के पक्ष मे नही है। उनके अनुसार निषेध अथवा नकार के द्वारा कोई भी धर्म पूर्ण नही हो सकता। जैन धर्म में जीवन के सुख तथा मानव प्रकृति का निषेध किया गया है । जैनेन्द्र ने जैन धर्म की तपश्चर्या द्वारा कैवल्य की प्राप्ति को स्वीकार नही किया , क्योकि उसमे व्यक्तित्व को पूर्णता नही प्राप्त होती। जैन धर्म की अति अहिसात्मक दृष्टि भी उन्हे मान्य नही है । जैनेन्द्र के अनुसार भावना की शुद्धता द्वारा यदि कभी हिसा हो जाय तो वह पाप नही है । जैनेन्द्र की अहिसा-नीति गाधी की अद्वैत वादी विचारधारा से अधिक अभिभूत है । जैन दर्शन की स्व पर मूलक धारा उन्हे प्रभावित नहीं कर सकी है। जैन धर्म मे शरीर को 'पर' तथा प्रात्मा को 'स्व' माना है। 'पर' से मुक्ति ही उनके धर्म का उद्देश्य है जो जैनेन्द्र को स्वीकार नहीं है। यदि जैनेन्द्र जैन धर्म के किसी तथ्य से प्रभावित है तो वह है स्यादवाद जो कि विश्वव्यापी महत्व रखता है।