Book Title: Jainendra ka Jivan Darshan
Author(s): Kusum Kakkad
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 326
________________ जेनेन्द्र का जीवन-दर्शन पृष्ठ प्रशसभर पष्ठ प्रशुद्ध की २८ निहाय मागि १०१ शुद्ध पाय पढे--स्यादाद में फायाशी तनिक भिन्नता तो यह है कि प्रत्यक कथन स्वय अपने ५१ बारा भाग्य बाधिता में 'अस्ति' और 'नास्ति' दोनो ५३ में हो। इसमें गभित है कि वह 'वस्तु है, वह वस्तु नहीं है।' 'अनन्तर' १०३ पराब' अपने 'परख' मे कट्टो अपन हमम पत्येक १०. साहित्य साहित्य के मृजनामा सृजनात्मक पक्ष में... समभाग समभाना १०७ धन के धन से स्वार्थ पधिकाश पात्र स्वार्थ-साधन साधना ७१ की प्रश्रय नहीका प्रश्रय नही १०६ जैनेन्द्र-धर्म जैन धर्म ७१ माग महश ११३ जीवन 'प्रानन्द इकाई ही-- ७१ सत्य के ७२ सहश्य महश ११३ विसदीकरण विस्तार हो तो ११४ अस्मि अस्थि ७३ गत्य स्वीकार्य १२६ मन्त महन्त रूप १४० 'नोलए' 'तो लाए' ७५ पारम्परिक पारम्परिक १४३ मन मनमय ওও হয়। मश १४७ अह से अह के ७६ परिचायिका परिचालिका १५१ भोज्य भोग्य ७६ अभिमानता निरभिमानता १५८ उसका उसमें ८० मुझे १६० आस्तिक आस्तिकता ८२ सपश्य सरश १६३ अह की अह को ८२ सुखदा से 'सुखदा' मे १६३ वह आलोचना यह आलोचना ८७ 'मुद्गल' पुद्गन' १७५ हिंसाकारी हिंसा का ही ८८ जिसमें जिससे १७६ भूत

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