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उपसहार
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उनके समस्त साहित्य मे श्रद्धा और आत्मविश्वास तथा भाग्य निर्भरता के रूप मे लक्षित होती है। ___ जैनेन्द्र के अनुसार व्यक्ति की समस्त क्रियाओ का मूलाधार उसकी धार्मिक दष्टि में ही समाविष्ट है। उन्होने धर्मपूर्वक ही राजनीति, धर्म और समाज आदि समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया है । जैनेन्द्र की दृष्टि मे धर्म परम्परागत कर्मकाण्ड से पृथक् जीवन की सहजता अथवा प्रकृति की स्वीकृति मे ही समाहित है । अहिसा, अपरिग्रह, दया, प्यार, सेवा आदि मानवीय गुणो का भी उन्होने यत्र-तत्र विवेचन किया है । उनकी दृष्टि मे मोक्ष जगत से मुक्ति नही है, वरन् अह से मुक्ति हे । वस्तुत ससार मे रहकर भी व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है । इस सम्बन्ध मे जैनेन्द्र जैन दर्शन से तटस्थ है । जैनियो का कैवल्य उन्हे स्वीकार नही है।
जैनेन्द्र ने अह को अशता के रूप मे स्वीकार किया है। उनके अनुसार कुल अस्तित्व अखण्ड है। कुल मे जो खण्डितता की प्रतीति आई है, उसे हम दो मायामो मे विभाजित कर सकते है----काल और आकाश । इन दो आयामो के मेल अथवा काट का बिन्दु ही अह बिन्दु है । काल और प्राकाश के मिलन-बिन्दु मे चेतना का प्रवाह होने से पृथकता अथवा 'मैं' का बोध होता है। जैनेन्द्र ने 'अह' शब्द को कई अर्थों में स्वीकार किया है। प्रथमत अह अस्तित्वबोधक है । 'मैं' का अपर रूप अहकार बोधक है । जैनेन्द्र के अनुसार अह का विसर्जन अर्थात् 'मे' भाव का त्याग ही जीवन का प्रमुख लक्ष्य है । 'मै' और 'पर' के प्रश्न को उन्होने 'स्व' पर के रूप में भी लिया है। 'मै' अथवा 'स्व' की परोन्मुखता ही उनके साहित्य का इष्ट है। समाज और राजनीति में 'मह' का यह रूप व्यक्ति के रूप में प्राप्त होता है। ___सामाजिक स्तर पर जैनेन्द्र ने स्त्री-पुरुष सम्बन्ध को लेकर ही तत्सम्बन्धित विभिन्न समस्याओ की अोर दृष्टिपात किया है। परिवार, विवाह, प्रेम-विवाह वैवाहिक जीवन में प्रेम, कामभावना, वेश्यावृत्ति आदि विषयो का विवेचन उन्होने अपनी अनुभूति के आधार पर प्रस्तुत किया है। जैनेन्द्र ने सामाजिक मर्यादा का निषेध नही किया है और न ही वे परिवार को तोडने के पक्ष में है, किन्तु जहा तक प्रेम का सम्बन्ध है, उसे वे सामाजिक बन्धन से मुक्त मानते है। काम और प्रेम को लेकर उनके साहित्य मे अनेकानेक समस्याए दृष्टिगत होती है । यह सत्य है कि विवाह मे प्रेम द्वारा जैनेन्द्र ने जीवन के एक महत्वपूर्ण सत्य की ओर दृष्टिपात किया है, क्योकि इस सत्य से कोई नकार नही सकता कि विवाह के बाद पति-पत्नी का आकर्षण बाहर की ओर से पूर्णतया समाप्त हो जाता है और वे परिवार के घेरे मे बन्द हो जाते है । हम व्यक्ति