Book Title: Jainendra ka Jivan Darshan
Author(s): Kusum Kakkad
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 277
________________ २७२ जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन भी व्यक्ति अपने बाह्य जीवन के संघर्षों से इतर आत्मिक सत्य को जानने के लिए प्रयत्नशील है। कवि हो अथवा लेखक अथवा विचारक-सभी की दृष्टि मे सत्य के सम्बन्ध मे एक धारणा होती है । वह सत्य असत्य को दृष्टि मे रखकर ही साहित्य-रचना के हेतु प्रवृत्त होता है। वैसे तो सत्य के स्वरूप को जाना नही जा सकता किन्तु जीवन मे उसकी अनुभूति आवश्यक है । सत्य की अनुभूति को मन मे धारणा किए बिना साहित्य-रचना निरी कपोल-कल्पना ही प्रतीत होगी । सत्य मानव जीवन का उपजीव्य है, किन्तु सत्य के साथ सुन्दर का समावेश होने पर ही साहित्यिक सत्य की स्वीकृति होती है । जैनेन्द्र के सम्पूर्ण साहित्य का अध्ययन करके हम इस निष्कर्ष पर पहुचते है कि उनके साहित्य मे सत्याभिव्यक्ति की पूर्ण चेष्टा की गयी है । सत्य के सूक्ष्म और स्थूल, व्यापक और सीमित, आध्यात्मिक और भौतिक आदि विभिन्न रूपो का उन्होने विशद् विवेचन प्रस्तुत किया है। जैनेन्द्र के साहित्य मे सत्य की व्यापकता का अवलोकन करने से पूर्व सत्य के अर्थ को जानना आवश्यक है। जैनेन्द्र का साहित्य समग्र जीवन की अभिव्यक्ति करने में सक्षम है। उन्होने जीवन के विविध राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक आदि पक्षो का विवेचन करते हुए उनके गूढ सत्यो का उद्घाटन किया है । जैनेन्द्र के साहित्य मे अभिव्यक्त सत्य को मानव की सापेक्षता मे ही जानने का प्रयास किया गया है। सत् का भाव सत्य जैनेन्द्र ने सत्य के सूक्ष्म स्वरूप का विवेचन करते हुए परम्परागत भारतीय दार्शनिको की विचारधारा का ही अवलम्ब लिया है। आधुनिक विचारको और दार्शनिको मे गाधी के आदर्शों की स्पष्ट झलक जैनेन्द्र के विचारो मे दृष्टिगत होती है। जैनेन्द्र के अनुसार 'सत्' का भाव सत्य है । जो है वह उसके कारण है, और उसके लिए है । इस प्रकार जो है वह सत् और जो उसको धारण करता है वह सत्य है।' गाधी ने भी सत्य को उपरोक्त रूप मे ही विवेचित किया है। जैनेन्द्र के अनुसार एकमात्र सत्य का ही अस्तित्व सभव हो सकता है। असत् से तात्पर्य न होने से है । अतएव जो नही है, उसके होने का प्रश्न ही नही उठता। उनके अनुसार जो नहीं है, उसके लिए यह 'असत्' शब्द भी अधिक है। जैनेन्द्र 'असत्' शब्द की स्वीकृति मे भी व्यक्ति की अहता के ही दर्शन होते है। उनकी दृष्टि मे जो नही है, उसे जोर देकर असत् कहने में व्यक्ति के अहकार का १ महात्मा गाँधी 'दि वायस आफ ट्र थ' २ महात्मा गाँधी 'दि वायस आफ द थ'

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