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जैनेन्द्र परम्परा और प्रयोग
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हए अपने तर्क-जाल को फैलाने की चेष्टा की है, किन्तु जैनेन्द्र-साहित्य का समग्र विवेवन करने के अनन्तर यह धारणा असगत नही प्रतीत होती है ।'
१. जैनेन्द्र कुमार : 'कहानी : अनुभव और शिल्प' (विजयेन्द्र स्नातक), पृ० १६ ।