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जैनेन्द्र परम्परा और प्रयोग
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मानवीय संवेदना के दर्शन प्राप्त होते है । उपरोक्त कहानी को प्रद्यान्त पढने से ऐसा प्रतीत होता है कि मानो लेखक ने मनुष्य ही नही, पशु के अन्तस् मे निहित प्रेम-मरण के द्वारा अपने साहित्य को दीप्त किया है। पशु बोल तो नही सकता, किन्तु वह भी प्रेम की भाषा पहचानता है । सुन्दर गाय का स्वामी परिस्थितिवश अपनी प्यारी गाय को बेच देता है। गाय विवश होकर चली तो जाती है, किन्तु वहा स्वामी के विछोह से दुखी होने के कारण उसका दूध कम हो जाता है । अपने मालिक द्वारा कारण पूछने पर वह कहती है- 'मै गौ ह रुपए के लेन-देन से अधिकार का और प्रेम का लेन-देन जिस भाव से तुम्हारी दुनिया मे होता है, उसे मै नही जानती । फिर भी तुम्हारी दुनिया मे तुम्हारे लिए मानती जाऊगी ।" गाय का उपरोक्त कथन बरबस ही हृदय को कचोट लेता है और हमे गाय द्वारा लेखक की प्रतिशयभावुकता के समक्ष विनत हो जाना पडता है । वस्तुत जैनेन्द्र ने पशु-पक्षियो को भी ईश्वर का प्रश मानते हुए उन्हे मानवीय भावो के प्रतीक के रूप मे प्रस्तुत किया है । 'चिडिया का 'बच्चा' मे जैनेन्द्र ने उन्मुक्त प्रकृति की गोद मे विचरण करने वाली चिडिया की अन्त प्रकृति का बहुत ही प्रभावोत्पादक चित्रण किया है । कहानी मे लेखक ने धनी माघवराम सेठ की लोभी, अहकारी वृत्ति तथा चिडिया की बच्ची की स्वच्छन्दप्रियता और भोलेपन का चित्रण किया है । सेठ अपने बाग में आयी हुई सुन्दर चिडिया के बच्चे को धन का प्रलोभन देकर बन्द कर लेना चाहता है । किन्तु वह तो धन-दौलत की भाषा जानती नही और कहती है- 'मेरी तो छोटी-सी जान है । आपके पास सब कुछ है । तब मुझे जाने दीजिए । २... साराशत लेखक ने व्यक्ति के ग्रह तथा चिडिया के भोले भाव को प्रतीकात्मक रूप मे व्यजित किया है ।
पौराणिक विषय
जैनेन्द्र ने मानवेत्तर विषयो के अतिरिवत पौराणिक कथाओ के माध्यम से भी मानवीय भावो की अभिव्यक्ति की है । 'देवी-देवता', 'बाहुबली', 'तद् ० ' 'उर्ध्व बाहु', 'भद्रबाहु', 'गुरु कात्यायन', 'नारद का अर्ध्य', 'यमपुर का निवासी' 'कामनापूर्ति' श्रादि कहानिया विविध पौराणिक प्राख्यानो को लेकर मानवजीवन के सन्दर्भ मे घटित हुई है ।
१ जैनेन्द्रकुमार जैनेन्द्र की कहानिया', भाग ३ |
२ जैनेन्द्रकुमार 'जैनेन्द्र की कहानिया', भाग ३ |