Book Title: Jainendra ka Jivan Darshan
Author(s): Kusum Kakkad
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 267
________________ २६२ जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन सजग रहना पड़ता है। उनके पात्रो के साथ ही पाठक को भी भागना पडता है। एक पक्ति का भी साथ छूटा कि बस गडबड हुई । इस प्रकार उनकी रचना के प्रत्येक शब्द पर ध्यान देना आवश्यक है। उनके साहित्य मे यत्र तत्र प्रयुक्त रिक्त स्थानो ( ) का बहुत ही महत्व है। 'कल्याणी' मे ऐसे उद्धरण बहुत मिलते है । इन अभावो के कारण ही जैनेन्द्र के साहित्य मे हम केवल सम्भावना पर ही चलते है। जैनेन्द्र के उपन्यासो मे घटनाए तो अधिक नही हे कि उनके पात्रो के सहारे व्यक्तित्व की गुत्थी सुलझ सके । अतएव अनुभूतिगत सूक्ष्मता एव विचार-तत्व को ग्रहण करने के लिए उनके साहित्य के अदृश्य सूक्ष्म सत्य को जानना आवश्यक है । जैनेन्द्र के अनुसार कहानी का सत्य घटना मे निश्रित होता है । अत उसे घटनाओ मे ही ढूढना पडता है, शब्दो मे नही । 'कल्याणी के व्यक्तित्व की सारी समस्या तब सहज ही स्पष्ट हो जाती है, जब कि उसकी समस्त क्रियाओं के प्रेरक अन्त मन मे हम प्रवेश करते है। वह प्रेम के अभाव मे कर्त्तव्य करते हुए भी विक्षिप्त-सी रहती है, जिसके कारण उसके जीवन में सन्तुलन और व्यवस्था का अभाव रहता है। इसी प्रकार 'गदर के बाद', व, 'गवार', 'पान वाला' आदि कहानियो मे सत्य की पकड के अभाव मे कहानी के साथ आत्मसात् होना कठिन हो जाता है। जैनेन्द्र के अनुसार मानव जीवन का अन्त सदैव सम्भाव्य है, निश्चित नही है, यही कारण है कि वे अपने पात्रो के जीवन की अन्तिम परिणति नही दिखाते । इस प्रकार वे अपनी रचनायो की पूर्णता मे भी अपूर्णता का सकेत देते है । 'जानने को शेष बना ही रहता है' यही उनके जीवन-दर्शन का प्रमुख आदर्श है। व्यक्ति जानने के लिए प्रयत्नशील है। किन्तु सृष्टि का सारा-का-सारा रहस्य वह नही जान सकता, क्योकि वह स्वय अपूर्ण है। जैनेन्द्र के साहित्य मे पात्रो के जीवन को अधिकाधिक साकेतिक रेखायो के द्वारा ही व्यक्त किया गया है। कही-कही तो अन्तर्कथाओ का एक-दो शब्दो में सकेत भर कर दिया गया है, यथा-'कल्याणी' मे कल्याणी अपने विवाह से पूर्व जीवन का वृतान्त बताती है, पर विस्तार से नही, उसमे सक्षिप्तता मे रहस्य बना ही रहता है । पाठक के मन की जिज्ञासा और भी तीव्र हो उठती है । एक स्थल पर कत्याणी कहती है- 'खैर, विवाह हुआ · वह भी एक कहानी है पर छोडिए ।' और वह तुरन्त विषय बदलती हुई कहने लगती है --- 'विवाह से स्त्री पत्नी बनती है ' इस प्रकार वह यह नही स्पष्ट करती कि उसके विवाह से सम्बन्धित कहानी क्या है ? ऐसी स्थितिया जैनेन्द्र की रचनायो मे बहुत अधिक मिलती है । वस्तुत जैनेन्द्र की कहानियो और उपन्यासो मे

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