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जैनेन्द्र का जोवन-दर्शन वह ऊपर से नीचे तक विरोधाभास लगाए हुए है । सम्यक् दर्शन का स्याद्वाद से मेल नही, किन्तु तत्व की भूमिका पर चाहे जैसा विरोव दीखता हो जीवन मे सामजस्य सहज फलित हो सकता है।' ___ जैन दर्शन मे एक अोर दृष्टि की मापेक्षता के दर्शन होते है, तो दूसरी ओर आग्रह प्रवान है । वस्तुत 'स्याद्वाद और सम्यक् दशन' परस्पर विरोधी है। यद्यपि जैन दार्शनिको ने व्यावहारिक भूमिका पर सामजस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है, किन्तु तात्विक दृष्टि से उनमे कोई सगति नही है। यही कारण है कि जैनियो की अहिसा का सिद्धात भी सैद्धान्तिक ही रह जाता है । जैनियो के विचार मे बौद्धिक निरूपण अधिक है, श्रद्धा का अभाव है। ____गाधी ने 'सत्याग्रह', द्वारा सिद्वात अोर व्यवहार मे सामजस्य स्थापित करने का प्रयास किया है । गाधी दर्शन अद्वैतवाद का पोषक है। जैन दर्शन द्वैतमूलक है। एक मे बौद्विक अभिमत प्रधान है तो दूसरे मे तात्विक सत्य की प्रवानता है । जैनियो मे बौद्धिक दृढता आती है, गाधी के सिद्वान्त मे कर्म की दृढता पाती है, बोद्धिक सकीर्णता नही आती है । जैनेन्द्र के अनुसार जैनी अहिसा की वारणा करुणामयी है। अद्वत से उद्भूत नही ह। इसलिए उसम जीव दया का अतिरेक भी हो जाता है । जैनी अहिसा मे जीवन की मरणशीलता कम हो जाती है जब कि गाधी जी की अहिसा ऐक्य मूलक है । जैनी अहिसा स्वकेन्द्रित होती है। जैन दर्शन मे 'ये करो, ये न करो' की प्रवत्ति बहुत अधिक मिलती है । निषेध के द्वारा जीवन की पूर्णता की प्राप्ति नही हो सकती। गाधी दर्शन मे व्यावहारिक जीवन की पूर्णता अथवा ऐक्य के दर्शन होते है । जैन दर्शन मे ग्रहीत अहिसा की जाती है और की जा सकती है, जब कि आस्तिक्य वाली अहिसा बाहर की नही जा सकती है अर्थात् अहिसा कर्म का विशेषण अथवा लक्षण नही रह जाती, प्रत्युत जीवन से तद्गत होती जाती है। उस अहिसा का स्वरूप बाहर से हिसा जैसा ही लग जाए तो असम्भव नही है । किन्तु जैन दर्शन मे हिसा को किसी भी स्थिति में स्वीकार नही किया जा सकता। गाधी दर्शन मे अद्वैत भाव की प्रधानता है जिसके कारण 'स्व पर' मे कोई अन्तर नही है। 'पर' को कष्ट से मुक्त करने मे 'स्व' द्वारा हिसा नही, वरन् अपरोक्षरूप से वर्म का ही सेवन होता है। गाधी जी ने अपने रुग्ण, मरणासन्न बछडे के कष्ट को असहनीय समझकर उसे जीव-मुक्ति देने मे ही धर्म का अश स्वीकार किया, किन्तु जैन धर्मी कभी भी ऐसा नही कर सकता।
जैनेन्द्र के साहित्य में 'हत्या' शीर्षक कहानी उपरोक्त तथ्य की सत्यता को
१ जैनेन्द्र से साक्षात्कार के अवसर पर।