________________
परिच्छेद - ६
जैनेन्द्र और समाज
प्रेमचन्द युग
ईसा की उन्नीसवी शताब्दी साहित्य की दृष्टि से प्रत्यन्त महत्वपूर्ण है । प्रेमचन्द - युग मे मानवतावादी राष्ट्रीय भावनाओ को प्रोत्साहन मिला । प्रेमचन्द का साहित्य सामाजिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्व रखता है । सामाजिक हित की ओर अधिकाधिक ध्यान केन्द्रित रखने के कारण ही वे युग-पुरुष बन गए । उन्होने अपने उपन्यास और कहानियो द्वारा सामाजिक कुरीतियों और तत्कालीन व्यवस्था की ओर दृष्टिपात करते हुए मानव जीवन की निराशाजनक स्थितियो मे आशा का सचार किया। उनके साहित्य का व्यापक परिवेश समाज की समस्या और उनके सुधार की भावना से ही तद्गत है । जीवन की यथार्थता उनके साहित्य में घटनाओ के कलेवर मे अभिव्यक्त हुई है । प्रेमचन्द की यथार्थ दृष्टि तत्कालीन स्थितियो का ही उद्घाटन करने में सक्षम है । उसमे आत्मनिष्ठ सत्य से अधिक स्थितिगत तथ्य का प्रभाव दृष्टिगत होता है । यही कारण है कि प्रेमचन्द के साहित्य में घटनाओ का बाहुल्य है । उनके पात्र त्याग सेवा, सहानुभूति, सहनशीलता आदि मानवीय गुणो के प्रतीक है । यथार्थ का आधार लेकर उन्होने अपना आर्दशवादी दृष्टिकोण का परित्याग नही किया है । सत्य तो यह है कि प्रेमचन्द साहित्य सामाजिक और नैतिक प्रादर्शो का ही प्रतिनिधित्व करता है । यथार्थ में ये इतना नही डूबे है कि आदर्श उनसे छूट गया हो ।
प्रेमचन्द की दृष्टि मे सामाजिक नीति और मर्यादा इतनी प्रावश्यक है।