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जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन
मे 'स्त्री की सार्थकता मातृत्व है । मातृत्व दायित्व है । वह स्वतन्त्रता नही है । स्त्री निपट स्वच्छन्द रहना चाहती है, तो उसके मूल मे यही अभिलाषा है कि माता बनने से वह बची रहे और पुरुष के प्रति उसका प्रेयसी रूप ही प्रतिष्ठित रहे। वस्तुत जैनेन्द्र की दृष्टि मे स्त्री मातृत्व से बचकर स्वय मे अपूर्ण रहती है । जैनेन्द्र की कहानियो मे मातृत्व की प्रबल आकाक्षा दृष्टिगत होती है। पति का अतिशय प्रेम और सहानुभूति प्राप्त करके भी नारी स्वय मे अभावग्रस्त रहती है । मातृत्व मे ही उसकी पूर्ति निहित है, जो कोरे प्यार मे उपलब्ध नही हो पाती। 'ग्रामोफोन का रिकार्ड' और 'मास्टर जी' मे नारी की विक्षुब्धता वात्सल्य भाव की पूर्ति के अभाव के कारण ही प्रकट हुई है। मातृत्व के साथ ही जैनेन्द्र की कहानियो मे वात्सल्य भाव की भी अभिव्यक्ति हुई है। इस दृष्टि से उनकी कई कहानियो—'फोटोग्राफी', आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।
वस्तुत जैनेन्द्र ने व्यक्ति और समाज के विविध पक्षो को साहित्य मे अपने विचारो और आदर्शो की छाया मे विवेचित किया है।
१ जैनेन्द्रकुमार 'कल्याणी', पृ० ७१ ।