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जैनेन्द्र का जोवन-दर्शन
चरित्र । किन्ही निश्चित मान्यताओ की सीमा मे वे व्यक्ति की कल्पना नहीं करते । प्रेमचन्द के पात्र 'टाइप' है । उपन्यास प्रारम्भ करते ही हमारे मन मे उनके पात्रो के सम्बन्ध मे एक निश्चित अवधारणा बन जाती है कि अमुक पात्र अमुक 'टाइप' का होगा । उनके उपन्यास का नायक दोषयुक्त नही हो सकता, किन्तु जैनेन्द्र के अनुसार अत्यन्त प्रतिष्ठित व्यक्ति भी दोषयुक्त हो सकता है तथा निम्नतम व्यक्ति भी आदर्श गुणो का प्रतीक बन सकता है । जैनेन्द्र के पात्रो के सम्बन्ध मे कोई भी धारणा पहले से निश्चित नही की जा सकती। उनके पात्र सदैव अपने अधूरे व्यक्तित्व का ही परिचय देते है। जैनेन्द्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति का हम सब कुछ नही जान सकते, क्योकि शेष जीवन मे भी उसमे परिवर्तन सम्भव हो सकता है। अतएव उसके सम्बन्ध मे अन्तिम निर्णय देना उचित नही है । जैनेन्द्र की दृष्टि मे जिस प्रकार ब्रह्म अज्ञेय है और उसके सम्बन्ध मे हमारी सम्भावनाए सदैव बनी रहती है, उसी प्रकार व्यक्ति का भविष्य अज्ञेय है । अज्ञेयवस्तु के सम्बन्ध मे निश्चित नही कहा जा सकता । जैनेन्द्र के अनुसार 'महान पात्र पाठक की रुचि और कल्पना को बाधते नही है, बल्कि स्फूर्त करके मुक्त करते है। उनके प्रति बराबर एक चाह, एक उत्सुकता बनी रहती है मानो वे मुट्ठी मे समाने के लिए नही है । __ वस्तुत जैनेन्द्र के व्यक्ति न तो 'टाइप' होकर निश्चेष्ट हो गए हैं और न ही अपने मे सीमित है । जैनेन्द्र का आदर्श एक का हर एक मे हो जाना हे । उनके अनुसार व्यक्ति स्वय को नही, वरन् अपने माध्यम से सत्य की झाकी को मूर्त करता है।
व्यक्ति और मनोविज्ञान
जैनेन्द्र का व्यक्तिवादी दृष्टिकोण मनोविज्ञान से प्रभावित प्रतीत होता है। किन्तु मनोविज्ञान से प्रभावित होते हुए भी उसकी (मनोविज्ञान की) मनोविश्लेषणात्मक नीति उन्हे ग्राह्य नही है । उन्होने मनोविज्ञान को साहित्य के स्तर पर जिस रूप मे स्वीकार किया है, वह व्यक्ति के मन से विज्ञान अर्थात् उसकी प्रकृति की सत्यता का उद्घाटन करने में सक्षम होता है। किन्तु सत्यता का प्रकटीकरण अपनी समग्रता मे ही सम्भव हो सका है । मनोविज्ञान द्वारा व्यक्ति की मानसिक चेतना का इस प्रकार मनोविश्लेषण किया जाता है कि व्यक्तित्व का सम्पूर्ण रूप स्पष्ट नहीं हो पाता ।
१ जैनेन्द्र कुमार साहित्य का श्रेय और प्रेय' पृ० स०, १९५३, दिल्ली,
पृ० स० १८१।