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जैनेन्द्र और व्यक्ति
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द्वारा ही मिटायी जा सकती है, रक्तक्रान्ति द्वारा नही । आर्थिक दान देकर अथवा धन का हस्तान्तरण करके गरीबी को मिटाया नहीं जा सकता, वरन् मानव आत्मा के बीच तनाव ही उत्पन्न किया जा सकता है । वस्तुत जैनेन्द्र ने भी अपने साहित्य मे गाधीवादी साधन और साध्य की शुद्धता पर बल दिया है। उनके अनुसार समानता लाने का प्राधार आत्मदान है । वे आर्थिक विषमता का कारण आर्थिक स्थिति में ही नही, हार्दिक वेदना अथवा सवेदनीयता के अभाव मे ही देखते हे। वस्तुत जैनेन्द्र जिस समानता की कल्पना करते है, वह वस्तुगत न होकर आत्मगत है। जैनेन्द्र के साहित्य मे व्यक्ति हिसाब, श्रेणी, वाद, और स्तर से ऊपर भावप्रधान है। बडे बनने की भावना ही पूजीवादी सभ्यता का मुख्य दोष है । जैनेन्द्र की दृष्टि मे 'आर्थिक' की जगह पारमार्थिक मूल्य हो, तो व्यक्ति अपने पडोसी की कीमत पर बडे बनने का विचार नही अपनाएगा।
मनुष्य और मशीन ___जैनेन्द्र के अनुसार भौतिक स्तर को बढाने के लिए नित्यप्रति नई-नई मशीनो का आविष्कार हो रहा है, किन्तु प्रतिक्रियास्वरूप मशीन मानव के अस्तित्व के लिए एक खतरा बन गई है । 'श्रम पर पूजी सवार है' मशीन पूजीकृत है और मानव श्रमनिष्ठ है। इस प्रकार मानव और मशीन की समस्या श्रम और पूजी की समस्या के रूप मे लक्षित होती है। जैनेन्द्र के अनुसार- 'जो सिर्फ सत् है वह जड, जिसमे साथ चित्त भी हो वह चेतन । सत् मे चित् गर्भित रूप से है ही। जिसमे चित् जगा हुआ है उसे किसी तरह सुलाया जा सके तो चेतन भी जड हो जाय । चित् जगाया जा सके तो जड भी चेतन हो जाय । किन्तु आधुनिक युग जडता-प्रधान ही हो गया है । मशीन द्वारा दुनिया को स्वर्ग बनाने की चेष्टा की जा रही है, किन्तु जैनेन्द्र की दृष्टि मे यह वृत्ति मानव की मृगतृष्णा के सदृश प्रतीत होती है । भौतिक सुख के उन्मेष मे वह बहता जा रहा है, किन्तु उसकी आन्तरिक तृषा शान्त होने को नही है। मुनाफे की
१ जैनेन्द्रकुमार 'समय और हम', पृ० स० ८४ । २ जैनेन्द्रकुमार 'समय और हम', पृ० स० ८४ । ३ जैनेन्द्रकुमार . 'अनन्तर', पृ० स० ८६ । ४. जैनेन्द्रकुमार · 'सोच विचार', पृ० स० २१७ । ५. 'पूजी और श्रम का सवाल मुझे जड चेतन का ही सवाल लगता है।'
-जैनेन्द्रकुमार 'सोच विचार', पृ० स० २१७।