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जैनेन्द्र और व्यक्ति
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शारीरिक श्रम ___ जैनेन्द्र पश्चिम की व्यावसायिक दृष्टि को मानव-कल्याण मे बाधक समझते है। उनके साहित्य मे इसीलिए शारीरिक श्रम और उद्योग पर विशेषतया बल दिया गया है, तथा उन्होने चर्खे के प्रयोग पर भी जोर दिया है । 'जयवर्धन', 'मुक्तिबोध' तथा 'विच्छेद' आदि उपन्यास और कहानियो मे उनके आदर्शों की पूर्ण झलक दृष्टिगत होती है । 'सुनीता' मे जैनेन्द्र ने शारीरिक श्रम पर सर्वाधिक बल दिया है। हरिप्रसन्न कहता है-'पैसा श्रम का होना चाहिए, मूर्त व चातुर्य का नही । उसके अनुसार शारीरिक अस्तित्व के लिए शारीरिक श्रम पर निर्भर रहना अत्यन्त आवश्यक है। हरिप्रसन्न स्वय को श्रमिक वर्ग का ही कहलाना चाहता है।
मानव-चरित्र और विज्ञान ___ आधुनिक युग विज्ञान का युग है। जैनेन्द्र ने अपने साहित्य मे वैज्ञानिक प्रगति का बहिष्कार नही किया है, तथापि उसे विशेष प्रश्रय भी नही प्रदान किया है। उनकी दृष्टि मे विज्ञान की प्रगति तभी तक ग्राह्य हो सकती है, जब तक वह मानव-चरित्र के विकास मे बाधक नही होती। मानव-चरित्र का आदर्शरूप व्यक्ति के स्नेह की सुरक्षा मे है । जैनेन्द्र ऐसी सभ्यता (साम्यवादी) को कदापि स्वीकार करने के पक्ष मे नही है जो मानव मानव के मध्य दूरी उत्पन्न कर देती है। जयप्रकाशनारायण के अनुसार विज्ञान के प्रभाव के कारण ही आज पडोसी अपरिचित हो गया है। 'अनन्तर' मे जैनेन्द्र के प्रगतिशील विचारो की स्पष्टता की झलक मिलती है । विज्ञान ने मानव जीवन को अधिकाधिक भौतिक बना दिया है, जिससे आध्यात्मिक दृष्टि का लोप होने लगता है। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से भारतीय सस्कृति की स्थिति बहुत दयनीय हो गई है। 'अनन्तर' मे विज्ञान के प्रति अपने आक्रोष को व्यक्त करती हुई वनानि कहती है कि 'विज्ञान बढे तो क्या, मानव-चरित्र को भी घटना ही
१ जैनेन्द्रकुमार 'सुनीता', पृ० स० ७२ । २ जैनेन्द्रकुमार 'सुनीता', पृ० स० ७२ । ३. जैनेन्द्रकुमार 'अनन्तर', पृ० स० ५६ । ४. “Science has turned the whole world into a neighbourhood,
but man has created a civilization that has turned even neighbours into strangers' -Jayaprakash Narayan'Socialism, Sarvodaya and Democracy'-(P 162).