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जैनेन्द्र की दृष्टि में भाग्य, कर्म-परम्परा एवं मृत्यु
पाश्चात्य नियतिवादी और अनियतिवादी विचार
जैनेन्द्र की भाग्यवादी दृष्टि मे तथा पाश्चात्य नियतिवादी दार्शनिको मे किचित् वैभिन्य दृष्टिगत होता है । पाश्चात्य दर्शन के क्षेत्र मे दो पृथक् विचारधाराए दृष्टिगत होती है--(१) नियतिवादी और (२) अनियतिवादी । नियतिवादी विचारको के अनुसार यदि व्यक्ति के जीवन के भूत और वर्तमान को भली प्रकार जान लिया जाय तो उसके भविष्य के सम्बन्ध मे निर्णय दिया जा सकता है । नियतिवादियो के अनुसार मनुष्य की सकल्प-शक्ति स्वतन्त्र नहीं है, पूर्व निर्धारित है। उनका कहना है कि निर्णीत कर्म मे सकल्प-शक्ति प्रेरणा के साथ समीकरण करती है और प्रेरणा का स्वरूप व्यक्ति के चरित्र पर निर्भर है । अतएव व्यक्ति के चरित्र का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लेने पर उसके आचरण के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है। नियतिवादी विचारक व्यक्ति के आचरण और प्रकृति की घटनाओ को एक ही नियम से सचालित होते हुए देखते है। नियतिवादी दार्शनिक अपने सिद्धान्तो की धुन मे यह भूल जाते है कि व्यक्ति प्रात्म-प्रबुद्ध प्राणी है । उसमे अनेको सम्भावनाए है और वह उन सम्भावनाप्रो को पूर्ण करने के लिए स्वतन्त्र है। उपरोक्त सत्य को सम्मुख रखते हुए कान्ट ने यह स्वीकार किया है कि सकल्प-शक्ति की स्वतन्त्रता नैतिकता की आवश्यक मान्यता है । नियतिवादियो के अनुसार पाश्चात्य और दृढ सकल्प का मानव जीवन मे कोई स्थान नही है। ___ जैनेन्द्र के विचारो और नियतिवादी दार्शनिको मे मूल अन्तर यह है कि जैनेन्द्र के पात्रो की सम्भावनाए नियति के कारण विनष्ट नहीं होती। जैनेन्द्र के साहित्य की सर्वप्रमुख विशेषता यही है कि वे पात्रो को भाग्य के सहारे छोड देते है और अपनी और भविष्य के सम्बन्ध मे व्यक्ति के चरित्र के सम्बन्ध मे कोई भविष्यवाणी नहीं करते। नियतिवादी भविष्य की घोषणा निश्चित रूप से कर देते है, किन्तु जैनेन्द्र के अनुसार भावी अज्ञेय है, व्यक्ति की पहुच से परे है । अतएव उस सम्बन्ध मे कुछ भी कहना व्यक्ति की क्षमता का उल्लघन करते हुए केवल अहता को पुष्ट करना है । जैनेन्द्र के अनुसार ब्रह्म सर्वव्याप्त है और वही भूत, वर्तमान, और भविष्य का ज्ञाता है । व्यक्ति अपनी सीमित शक्ति के कारण वर्तमान की यथार्थता मे ही जीवन व्यतीत करता है और भविष्य की सम्भावना मे आदर्शों की पूर्ति के स्वप्न देखता है। इस प्रकार जैनेन्द्र के पात्र अतिशय भाग्यवादी होते हुए भी अपने जीवन की सम्भावनाओ का हनन नही
१ शाति जोशी के 'नीतिशास्त्र' मे व्यक्त विचारो पर आधारित, प्रथम सक्षिप्त
सस्करण, दिल्ली, १९६३, पृ० स० ८२-८५ ।