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फ्रायड मनोविज्ञान
मनोविज्ञान मे 'मै' अथवा ग्रह के हेतु 'इगो' शब्द का प्रयोग किया गया है । ' सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्रायड ने मनोविश्लेषरण के द्वारा मानव जीवन के गुह्य रहस्य का उद्घाटन किया है । साहित्य पर फ्रायड के सिद्धातों का बहुत अधिक प्रभाव लक्षित होता है । यद्यपि जैनेन्द्र स्वय को फ्रायड के सिद्धात से परिबद्ध नही मानते, फिर भी उनके साहित्य मे फ्रायडीय मनोविश्लेषण की झलक पूर्णत दृष्टिगत होती है ।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इगो' शरीर तथा 'मानसिक सघटन" का सूचक है । मानव मस्तिष्क के चेतन, अर्धचेतन तथा प्रचेतन तीन पहलू है, जिनपर समस्त मानसिक सघटन आधारित है | चेतन-पक्ष वर्णनात्मक होता है । व्यक्ति का अभिव्यक्त रूप चेतन है । चेतना के द्वारा ही वह बाह्य जगत ( रियल्टी) से सम्बन्ध स्थापित करता है | चेतना प्रत्यक्ष - बोध ( परसेप्शन ) पर आधारित होती है, इसलिए उसका स्थायित्व होता है | चेतन के भीतर व्यक्ति का अचेतन मन विद्यमान है । फ्रायड के अनुसार व्यक्ति का चेतनपक्ष अर्थात कान्शस ही इगो है और अचेतन पक्ष 'इड' है । फ्रायड के अनुसार अवचेतन मन ही व्यक्ति की समस्त क्रियायों का प्रेरक स्रोत है । इगो अथवा ग्रह अचेतन (इड) का वह प्रश है जो बाह्य जगत के प्रभाव के कारण सशोधित हो जाता है । इगो के सशोधन मे प्रत्यक्ष-बोध का बहुत अधिक सहयोग रहता है । वस्तुत फ्रायड की दृष्टि मे इगो (ह) अत जगत की अभिव्यक्ति तथा बाह्य जगत से सम्बन्ध स्थापित करने की कडी है । फ्रायड की दृष्टि मे इगो का प्रात्मा अथवा परमात्मा से कोई सम्बन्ध ही नही है । इगो मानसिक सघटन का ही एक अश है। उसका स्वय मे कोई महत्व नही है । इगो का कार्य अचेतन मन इड की उधार ली हुई शक्ति के द्वारा अभिप्रेरित होता है । फ्रायड ने इगो को अवचेतन मन का सेवक माना है । अचेतन मन व्यक्ति की इच्छाओ का केन्द्र है । अचेतन के मूल में लिविडो अर्थात् काम प्रवृत्ति सक्रिय रहती है । फ्रायड के अनुसार ग्रह अर्थात् व्यक्ति की समस्त इच्छाओ की प्रेरक काम प्रवृति ही है । सामाजिक मर्यादा के कारण व्यक्ति अपनी दमित वासना की स्वच्छन्दाभिव्यक्ति मे असर्मथ होता है । अतएव
जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन
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१ सिगमंड फ्रायड 'दि इगो एण्ड दि इड', चोथा सस्करण, १६४७, पृ० १५ । 'दि इगो इज फर्स्ट एण्ड ए बाडी.. इगो'.. फ्रायड 'इगो एण्ड दि इड', पृ० ३१ ।
फ्रायड 'इगो एण्ड दि इड' ।
फ्रायड 'इगो एण्ड दि इड', पृ० २६ ।
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