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अपने मन के प्रेम को पुष्ट करती है । "
वस्तुत जैनेन्द्र- साहित्य मे बाह्यरूप मे जिसे हम पाप समझते है, अथवा भौतिक समझते है, उचित नही है । जैनेन्द्र के अनुसार जो पापी दिखाई देता है वह मूल मे दुखी ही है ।' 'पानवाला' कहानी मे पानवाला देखने मे दुश्चरित्र लगता है। महिलाओ की ओर उसकी ताक - भॉक मे शिष्टता ही प्रदर्शित होती है । उसकी पूरी कहानी से परिचित होने से पूर्व कौन कह सकता है कि उसके मन के कोने मे कितना गहरा दर्द भरा है जो उसे ऐसा कृत्य करने के लिए विवश किए हुए है । प्रेम के कारण वह स्वयं को त्रास देकर अपनी आत्मा का परिष्कार तथा प्रायश्चित करता है ।
जैनेन्द्र का जोवन-दर्शन
इस और सैडिज्म
फ्रायड के अनुसार मानव के अचेतन मन मे दो प्रकार की मूल प्रवृत्तिया होती है-- पहली इरोस या काम भावना, जिसे प्रात्मरक्षा की प्रकृति भी कह सकते है और दूसरी सेडिज्म अर्थात् पर- पीडा रति । जैनेन्द्र- साहित्य में उपरोक्त दोनो प्रवृत्तिया दृष्टिगत होती हे । काम प्रवृत्ति ( लिबिडो ) का स्व-रक्षा ( सेल्फ डिजविग ) रूप जैनेन्द्र के साहित्य में अस्तित्व और सृष्टि विस्तार के रूप मे प्राप्त है । काम-भावना के द्वारा ही सृष्टि का विकास होना है । सेडिज्म अर्थात् पर पीडा रति द्वारा व्यक्ति की अता परता को त्रास देने में ही सन्तुष्ट होती है । काम अर्थात् स्त्री-पुरुष सम्बन्ध मे परपीडा रति ही विशेष रूप से सहायक होती है | त्रास देने और लेने मे ही आनन्द की उपलब्धि होती है । केवल काम-प्रवृत्ति के क्षेत्र मे त्रास देने में अहता का विगलन होता है, किन्तु इससे परे व्यक्ति स्वय कष्ट झेलकर ही आत्म-परिष्कार कर सकता है । जैनेन्द्र के साहित्य मे 'ग्रामोफोन का रिकार्ड', 'एक रात' एव 'विज्ञान' आदि कहानियो मे स्व को मिटा देने की उत्कट लालसा दृष्टिगत होती हे । 'ग्रामोफोन का रिकार्ड' मे पर- पीडन के प्रभाव मे मानसिक विक्षोभ मन को व्याकुल कर देता है और अन्त में 'मैं' को कुचल देने की अभीप्सा जाग्रत होती है । प्राय देखा जाता है कि काम भावना से ग्रस्त व्यक्ति पर
१ 'पशु पाप नही कर सकता, मनुष्य कर सकता है तो इसलिए कि वह उस पद्धति से आत्माविष्कार कर सके ।'
- जैनेन्द्र कुमार 'समय और हम', पृ० ५४४ । 'समय और हम', पृ० ५४४ ।
२ 'पापी को दुखी ही मानिए- - जैनेन्द्र कुमार ३ जैनेन्द्र की कहानिया [ भाग छ ], पृ० ५२ ।