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जैनेन्द्र के ग्रह सम्बन्धी विचार
१४७ है कि जैनेन्द्र की दृष्टि में अह क्या है तथा उन्होने अह को किन अर्थो मे स्वीकार किया है और उनकी विचारधारा परम्परागत दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक विचारधारा से कहा तक स्वतन्त्र अथवा प्रभावित है ?
जैनेन्द्र के साहित्य मे सामान्यत 'अह' शब्द सन्दर्भ सापेक्षता मे विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। अह का मूल भाव व्यक्ति के 'मै' भाव से सम्बन्धित है। 'मै' अस्तित्व बोधक है। समस्त सृष्टि एकमात्र 'मै' के अस्तित्व पर ही निर्भर है । 'मै' चेतना युक्त है । चेतन शक्ति के कारण ही व्यक्ति को अपने अस्तित्व का बोध होता है । चेतना के अभाव मे 'मै' का अस्तित्व अर्थहीन सिद्ध होगा। जड वस्तुओ का अस्तित्व भी चेतन जीव के अह-बोध द्वारा ही ग्राह्य हो सकता है । जैनेन्द्र ने अह को दो विशिष्ट अर्थो मे स्वीकार किया हैपहला अस्तित्वबोधक, दूसरा अहकार सूचक । प्रथम अर्थ मे सृष्टि-विस्तार का बोध होता है तथा द्वितीय अर्थ मे विनाश सूचक है । जैनेन्द्र साहित्य मे अह के इन दो रूपो को बहुत ही व्यापक रूप से मौलिकता का पुट देकर विवेचित किया गया है ।
अह का अर्थ : भारतीय और पाश्चात्य दर्शन
भारतीय दर्शन तथा मनोविज्ञान मे अह से समानार्थी विभिन्न शब्दो का प्रयोग प्राप्त होता है । दर्शन शास्त्र मे 'स्व' तथा आत्मतत्व और मनोविज्ञान मे इगो के रूप मे अह शब्द का प्रयोग किया गया है । फ्रायड मनोविज्ञान को छोडकर सामान्यत स्व और इगो दोनो ही अहबोधक है । स्व मै का पर्याय है तथापि मै अस्तित्वबोधक है और स्व आत्मता का सूचक है । इसी प्रकार सीमित मै अथवा अह भाव अहकार सूचक है । इगो द्वारा व्यक्ति की आत्मता से मेरी अधिक उसकी मानसिक सरचना का बोध होता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से व्यक्ति का मस्तिष्क चेतन, अवचेतन तथा अचेतन स्तरो मे विभाजित है। 'ईगो' व्यक्ति के अचेतन मन की अभिव्यक्ति का साधन है । वह चेतन मन से सम्बन्धित है।
उपरोक्त दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणो मे भिन्नता लक्षित होती है । दर्शन व्यक्ति के 'स्व' को लेकर चलता है । उसके विवेचन का आधार व्यक्ति का आत्मतत्व है । मनोविज्ञान मे व्यक्ति की आत्मता से इतर मानसिकता को विशेष प्रश्रय प्राप्त हुआ है । एक का विवेचन अध्यात्मपरक (मेटाफिजिकल) है, दूसरे का वस्तुपरक (मेटीरियलिस्टिक), जैनेन्द्र का साहित्य अध्यात्म और भौतिकता की समष्टि है। इसलिए उनके साहित्य मे दर्शन और मनोविज्ञान का सामजस्य होना स्वाभाविक है।