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जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन
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नवीन नही हो सकते । जैनेन्द्र के वार्मिक विचार भी किसी नये प्रदश की स्थापना नही करते, किन्तु उनका महत्व सत्य को तत्कालीन आवश्यकता के मनुकुल नये ढंग से व्यक्त करने मे हे । जेनेन्द्र का जन्म जैन परिवार में हुआ है । जैन धर्म की श्रात्मा उनके सरकारो में समायी हुई है । जैनेन्द्र यदि स्वधर्म के रूप में किसी भी नम को स्वीकार किया है तो वह जैनवम ही है । जेनेन्द्र ने अपने जीवन को जेन आदर्श में ही ढालने का प्रयास किया है। साहित्य जीवन की प्रभिव्यक्ति है, प्रत जैनेन्द्र- साहित्य पर जैन चम प्रोर दशन का प्रभाव पडना स्वाभाविक ही है । अतएव जैनेन्द्र के धार्मिक विचारो को रामने के लिए जैन धर्म का स्वरूप और उसकी व्यापकता को समझना अनिवार्य है ।
जेनियो का विश्वास हे कि जैन धर्म भारतवर्ष में ही नही, वरन् विश्व मे पना महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।' जैनियो की प्रहिसक और रहस्यवादी दृष्टि समस्त विभिन्नताओ को स्वीकार करके चली है । उसमें किसी मत का निषेध नही किया गया है और न ही किसी भी विचार को निरपेक्ष सत्य के रूप में ही स्वीकार किया गया है । जैनियो ने 'पट र नाटक माग की नस्वीकार करके बी' के मार्ग का अनुसरण किया है । जैनियो की रहस्यवादी सीट पाश्चात्य विद्वान् प्रान्स्टाइन की रिलेटिविटी का सिद्धान्त पयक नही है ।" भारतीय तथा पाश्चात्य दार्शनिको ने दोनो की शब्दावती में भी समानता कही दर्शन किए है | ग्राउन्स्टाइन के अनुसार सम्पूरण सत्य का ज्ञान मनुष्य की बुद्धि क परे है, हम केवल सापेक्ष सत्य को ही जान सकते है ।'
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“It is true that according to the belief of the Tains than religion is a world religion' in the sense that it is a religion not only for human beings of all races and classes, but even for animals, Gods and denizens of hell" Winteinitz Calcutta (1933), (p 425)
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Winternitz - Calcutta (1933)
डा० राधाकृष्णन ने स्याद्वाद की प्रग्रेजी मे 'रिलेटिविटी' से सम्बन्धित किया है और 'रिलेटिविटी' को हिन्दी में 'स्याद्वाद' के नाम से सबोधित किया गया है। डा० राधाकृष्णन 'इण्डियन फिलासफी'
'We can know only the relative truth, the absolute is known only to the universal observer. '
-DI R Krishnan
Indian Philosophy