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जैनेन्द्र का जीवन-दर्शन
का आधार यही कर्मशीलता है, वाद-विवाद नही। जेन धर्म मे अन्यविश्वासो और मिथ्या आडम्बरो का उन्मूलन धम के तर्क सम्मत रूप द्वारा ही किया गया है । यहा तर्कजाल न बिछाकर, कोरी भावना मे बुद्धि का समावेश किया गया है।
धर्म और राजनीति ___ जैनेन्द्र के साहित्यिक-रचना का प्रारम्भिक काल राजनीतिक उथल-पुथल का काल था। चारो ओर गाधी का प्रभाव व्याप्त था । राजनीति को लोग धर्म से निरपेक्ष रखना चाहते थे। उनके अनुसार राजनीति के हिसात्मक धरातल पर धर्म को आरूढ नही किया जा सकता था। गाधी का जीवन आध्यात्मिकता और नैतिकता का स्पष्ट उदाहरण है। उन्होने अपना सारा जीवन देश की राजनीति मे ही लगाया था किन्तु राजनीतिक-परिवेश मे रहते हुए भी वे राजनेता नही थे। वह तो महान् धार्मिक और अध्यात्म पुरुष थे। उनके अनुसार राजनीति जीवन का अग होने के कारण जीवन-धर्म से विमुख नही हो सकती। धर्म-निरपेक्ष राजनीति मे मानव-कल्याण को विशेष प्रश्रय नही दिया जा सकता। उसमे राजनीति का तात्पर्य राजतत्र से लिया जाता है। जैनेन्द्र ने अपने जीवन की अाव्यात्मिकता को राजनीति मे ढालने का प्रयास किया है। जैनेन्द्र' गाधी के युग मे ही हुए है। वे गाधी के वाद से बधे हुए नही है, किन्तु युगीन चेतना से वे स्वय को पूर्णत तटस्थ नही कर सके। जैनेन्द्र के अनुसार धर्म की साधना राजनेता जिस प्रकार सफलतापूर्वक कर पाता है, उतना धर्म का नेता नही ।' धर्म भावात्मक है, राजनीति कर्मप्रधान है। धार्मिक सिद्धातो और प्रादर्शी का सक्रिय और व्यवस्थित रूप ही राजनीति है। जैनेन्द्र के अनुसार सामान्यत धम-निरपेक्षता के दो रूप देखने को मिलते है । एक वह रूप जिसमे धर्म के प्रति पूर्ण उपेक्षा भाव रहता है और दूसरा वह जिसमे किसी धर्म-विशेष को न स्वीकार करते हुए भी सभी धर्मों के प्रति समान आदर की भावना दृष्टिगत होती है। राजनीति मे जैनेन्द्र ने धर्म के जिस स्वरूप का समावेश करना चाहा है, वह उसका विज्ञानसम्मत रूप ही है। उसमे पूजा-व्रतादि को प्रश्रय न देकर धार्मिक श्रद्वा को विशेष महत्व दिया गया है । 'जयवर्धन' और 'मुक्तिबोध' मे तथा कुछ कहानियो मे उनकी इसी विचारधारा के दर्शन होते है। उनके अनुसार विभिन्न राष्ट्रो मे धर्म-युद्ध की स्थिति ही स्वीकार की जा सकती है। सीमा
१ प० जवाहरलाल नेहरू 'मेरी कहानी', पृ० ५३१ । २ जैनेन्द्र 'जयवर्वन', पृ० ३६६ ।