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परिच्छेद --२
जैनेन्द्र के ईश्वर सम्बन्धी विचार
ईश्वर के अस्तित्व का बोध
"जिसके बारे मे हम कुछ नही बता सकते, उसके बारे मे चुप रहना चाहिए ।' वित्न्स्तीन की यह उक्ति यद्यपि ईश्वर के अस्तित्व और स्वरूप पर पूरी तरह सही उतरती है, तब भी मानव की बुद्धि और उसकी वाणी ईश्वर के विषय मे कभी भी निष्क्रिय नही रही ।" सृष्टि की व्यापकता, व्यवस्था तथा निरन्तर जन्म-मरण के क्रम को देखते हुए मानव मन मे सदैव यह जिज्ञासा रही है कि इस समस्त दृश्य जगत् के पीछे कोई परम सत्ता ग्रदृश्य रूप से अवश्य कार्य कर रही है। सूर्य का प्रकाश, दिन-रात का क्रमिक आगमन एव विराट् प्रकृति ही उस परम सत्ता की अभिव्यक्ति है । प्रास्थापरक मनीषियों ने परमसत्ता के अस्तित्व को अपनी हार्दिक श्रद्धा और विश्वास के आधार पर ही स्वीकार किया है। उन्हे अपने परमेश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए तर्क का सहारा नही लेना पडा । उनकी दृष्टि मे 'ईश्वर है' और वही एकमात्र शक्ति सम्पन्न है, इस विश्वास के सम्मुख सारे तर्क और बौद्धिक वाग्जाल मिथ्यावाद का पोषण करते हुए प्रतीत होते है । विश्वासी के समक्ष ईश्वर को तर्क द्वारा सिद्ध करने का प्रश्न ही नही उठता । भौतिकतावादी विचारक इन्द्रिय प्रत्यक्ष को ही सत्य मानते है । उनकी दृष्टि मे ईश्वर इन्द्रियगोचर नही है, इसलिए ईश्वर नाम की किसी परम सत्ता का प्रश्न ही
१ जैनेन्द्र कुमार 'समय प्रोर हम', दिल्ली, प्र० स०, १९६२, पृ० १४ ।